AYURVEDA TREATMENTS विपिन कुमार |
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आरग्वध मदन गोपघोण्टा कण्टकी कुटज पाठा पाटला मूर्वा इन्द्रयव सप्तपर्ण निम्ब कुरुण्टक दासी-कुरुण्टक गुडूची चित्रक शार्ङ्गष्टा करञ्जद्वय पटोल किराततिक्तकानि सुषवी चेति - सुश्रुत संहिता सूत्रस्थानम् अध्याय ३८.६ सुषवी का अर्थ आप्टे संस्कृत कोश में एक प्रकार की लौकी या काला जीरा या जीरा दिया गया है। लेकिन सुश्रुत संहिता के अनुवादक/व्याख्याकार कविराज अम्बिकादत्त शास्त्री ने इसका अर्थ करेला किया है। आरग्वध गण 11करञ्ज(?)
आरग्वधादौ विपचेद्दीपनीययुतं घृतम्। क्षारवर्गे पचेच्चान्यत् पचेन्मूत्रगणेऽपरम्॥ घ्नन्ति गुल्मं कफोद्भूतं घृतान्येतान्यसंशयम्॥ - सुश्रुत संहिता उत्तरतन्त्रम् ४२.३८ आरग्वध गण तैयार करने के लिए अमलतास की फलियों का गूदा निकाल लिया गया और उसे करेले के रस में भिगो कर तथा छलनी से छानकर शुद्ध गूदा अलग कर लिया गया । इसी प्रकार गिलोय को काट कर छोटे-छोटे टुकडे करके करेले के रस के साथ जूसर मिक्सी में घोट लिया गया और रस को छान लिया गया। इसमें अन्य ओषधियों का चूर्ण मिलाया गया और धूप में सुखा लिया गया। यह पाया गया कि यह चूर्ण कुछ दिनों में खराब होने लगता है। इसे स्थायी बनाने के लिए इसमें गौघृत मिला दिया गया। इसी प्रकार दीपनीय गण की ओषधियों में घृत मिलाया गया। अब दीपनीय गण व आरग्वध गण की ओषधियों को मिला कर सेवन किया जा सकता है। जब तक आरग्वध गण की ओषधियों में करेले के रस की भावनाएं नहीं दी गई, तब तक दीपनीय गण - आरग्वध गण का योग इतना उष्ण था कि इसके अधिक सेवन से गुदा स्थान में फोडे होने का भय रहता था। करेले के रस की भावनाओं से वह दूर हो गया। |