AYURVEDA TREATMENTS

विपिन कुमार

पञ्चभद्र(ज्वर हेतु)

यकृत सिरोसिस

दीपनीय गण

आरग्वध गण

हृदय रोग व दुग्ध

कृमि उपचार

 

  पिप्पली पिप्पलीमूल चव्य चित्रक शृङ्गबेर मरिच हस्तिपिप्पली हरेणुका ऐला अजमोदा इन्द्रयव पाठा जीरक सर्षप महानिम्बफल हिङ्गु भार्ङ्गी मधुरसा अतिविषा वचा विडङ्गानि कटुरोहिणी चेति। - सुश्रुत संहिता सूत्रस्थानम् अध्यायः ३८.२२

दीपनीय गण की उपलब्ध ओषधियां निम्नलिखित हैं -

दीपनीय गण

1पाठा 2अजमोदा 3वचा /बच 4वायविडंग 5सर्षप /सरसों 6शुण्ठी/ सोंठ 7पिप्पली 8काली मिर्च 9चित्रक मूल 10जीरा  11एला /छोटी इलायची 12इन्द्रयव 13चव्य 14अतिविषा/ अतीस 15कटुरोहिणी/कुटकी

1पाठा 2अजमोदा 3वचा /बच 4वायविडंग 5सर्षप /सरसों 6शुण्ठी/ सोंठ 7पिप्पली 8काली मिर्च 9चित्रक मूल 10जीरा  11एला /छोटी इलायची 12इन्द्रयव 13चव्य 14अतिविषा/ अतीस 15कटुरोहिणी/कुटकी

 

आरग्वधादौ विपचेद्दीपनीययुतं घृतम्। क्षारवर्गे पचेच्चान्यत् पचेन्मूत्रगणेऽपरम्॥

घ्नन्ति गुल्मं कफोद्भूतं घृतान्येतान्यसंशयम्॥ - सुश्रुत संहिता उत्तरतन्त्रम् ४२.३८

 श्लोक में कहा जा रहा है कि दीपनीय गण की ओषधियों से युक्त घृत में आरग्वधादि गण की ओषधियों का पाक करे। दीपनीय गण की ओषधियों का क्षारवर्ग में भी पाक करे तथा एक अन्य भाग का मूत्रगण में भी पाक करे। इस प्रकार घृत से युक्त दीपनीय गण की ओषधियों का पाक आरग्वधादि गण के साथ करना है, दीपनीय गण की ओषधियों के दूसरे भाग का क्षारवर्ग(राख का पानी?) के साथ तथा तीसरे भाग का गौ, महिषी, उष्ट्र, अज, हस्ती आदि आठ पशुओं के मूत्र के साथ। 

    उपरोक्त सूत्र कफ से उत्पन्न गुल्म की शांति के लिए निर्दिष्ट है। लेकिन व्यवहार में यह ओषधि जुकाम की अचूक ओषधि भी सिद्ध हुई है।

    व्यवहार में यह संशोधन किया गया कि दीपनीय गण के चूर्ण को स्थायी बनाने के लिए उसमें गौघृत मिला दिया गया।आरग्वध गण तैयार करने के लिए अमलतास की फलियों का गूदा निकाल लिया गया और उसे करेले के रस में भिगो कर तथा छलनी से छानकर शुद्ध गूदा अलग कर लिया गया । इसी प्रकार गिलोय को काट कर छोटे-छोटे टुकडे करके करेले के रस के साथ जूसर/ मिक्सी में घोट लिया गया और रस को छान लिया गया। इसमें अन्य ओषधियों का चूर्ण मिलाया गया और धूप में सुखा लिया गया। यह पाया गया कि यह चूर्ण कुछ दिनों में खराब होने लगता है। इसे स्थायी बनाने के लिए इसमें गौघृत मिला दिया गया। जब भूख लगी हो, तभी सेवन करनी चाहिए। जुकाम में पानी नहीं पीना चाहिए जिससे अन्दर की अग्नि का दीपन हो।

    जब आरग्वध गण में किराततिक्त की मात्रा बहुत कम कर दी गई तो जुकाम में लाभ होना बंद हो गया(परीक्षित रोगी संख्या - 3)।

कैंसर की विकसित अवस्था में फेफडों में पानी भरने लगता है। उस स्थिति में पानी को सुखाने की अचूक ओषधि है(परीक्षित रोगी संख्या - एक)। लेकिन स्वयं कैंसर में कितना आराम होगा, यह कहना कठिन है।