AYURVEDA TREATMENTS

विपिन कुमार

पञ्चभद्र(ज्वर हेतु)

यकृत सिरोसिस

दीपनीय गण

आरग्वध गण

हृदय रोग व दुग्ध

कृमि उपचार

 

प्रायः देखा जाता है कि जैसे - जैसे आयु बढती है, हृदय की सक्रियता कम होती जाती है। अन्त में हृदय की सक्रियता कम हो जाने से कैंसर जैसे बहुत से रोग घेर लेते हैं। 60 वर्ष से ऊपर की आयु वाले व्यक्तियों में आटे के सेवन से हृदय की सक्रियता में निश्चित रूप से वृद्धि होती है। लेकिन वृद्ध लोगों में सबसे अधिक प्रभाव दुग्ध का सेवन त्याग देने अथवा दुग्ध सेवन कम कर देने से पडता है। बहुत से व्यक्तियों का चेहरा देखने से उस पर चमक, लाली सी दिखाई देती है और उसके मिलने वाले कहते हैं कि तुम्हारे चेहरे पर तो रौनक आ रही है। वह रौनक नहीं है, अपितु दुग्ध का सेवन चमक रहा है। दुग्ध का सेवन कम कर देने से उनके हृदय की सक्रियता में बहुत वृद्धि देखी गई है और फिर उनको आटे के सेवन की भी अधिक आवश्यकता नहीं पडी।

    प्रायः रोगियों द्वारा यह पूछा जाता है कि दही का सेवन करें या न करें। इसका उत्तर यही होता है कि योगसाधना के किसी भी शिविर में दधि का सेवन नहीं किया जाता। शास्त्रों के अनुसार, दधि का सेवन रात्रि में न करे, यदि करे तो आमला डाल कर करे। लेकिन, अच्छा यह है कि दधि का सेवन कभी भी करे, त्रिफला चूर्ण डालकर करे। इससे मुख पर जहां भी लाली होती है, वह कालेपन में बदलने लगती है, मुख काला होने लगता है।

22-6-2014ई.(आषाढ कृष्ण दशमी, विक्रम संवत् 2071)