पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX
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Foreword by Dr. Harihar Trivedi प्राक्कथन श्रीमती राधा गुप्ता तथा श्री विपिन कुमार के माध्यम से पुराण विषय अनुक्रमणिका के सृजन का जो कार्य चल रहा है , उसे देखकर मुझे अत्यन्त आत्मिक सन्तोष का अनुभव होता है । विगत वर्षों में हमारे देश में वेदों के पुनरुद्धार का प्रयत्न तो बहुत किया गया है , लेकिन उसमें सफलता अधिक नहीं मिल सकी है । दूसरी ओर , पुराण धार्मिक ग्रन्थों की कोटि में होने पर भी उनको ऐतिहासिक राजाओं आदि का वर्णन समझकर उनकी उपेक्षा सी कर दी गई है । यह हर्ष का विषय है कि श्रीमती राधा गुप्ता तथा उनके सहयोगी लेखकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि पुराण और वेद अन्योन्याश्रित हैं और पुराण कोई ऐतिहासिक राजाओं का वर्णन न होकर वेदों के छिपे रहस्यों को प्रकट करने का एक माध्यम हैं जिनको समझने के लिए तर्क और श्रद्धा दोनों की आवश्यकता पडती है । पुराणों का महत्त्व इसलिए और अधिक हो जाता है क्योंकि हमारे सारे समाज का आधार पुराणगत वर्णन हैं । पुराणों में किसी तथ्य का वर्णन जिस रूप में भी उपलब्ध है , चाहे वह वर्तमान दृष्टि से उचित है या अनुचित , हमारे कट्टरपन्थी समाज में उसका अक्षरशः पालन हो रहा है । लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि पुराणों की भाषा को अक्षरशः उसी रूप में मानना जिसमें वह कही गई है , मूढता होगा । पुराणों में सूक्ष्म और कारण शरीर की घटनाओं को स्थoल शरीर के स्तर पर समझने योग्य बनाया गया है । यदि पुराणों में शूद्र की छाया पडने का निषेध है तो इस कथन को आंख - कान बंद करके मानना तो मूर्खों का काम होगा । महाभारत आदि ग्रन्थों में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि ब्राह्मण कौन है , कौन क्षत्रिय है , कौन वैश्य है और कौन शूद्र । जिसने अपने काम , क्रोध आदि पर विजय पा ली हो वह ब्राह्मण हो सकता है , इस प्रकार पुराणों की दृष्टि से सोचा जाए तो हम सभी शूद्र अथवा शूद्रेतर ही हैं , ब्राह्मणत्व का तो कहीं नाम ही नहीं है । प्रायः कहा जाता है कि वेद पढने का अधिकार केवल ब्राह्मण को है और शूद्र तो केवल पुराण ही सुन सकता है । इस कथन में तनिक भी संदेह का स्थान नहीं है । जब तक व्यक्ति बिल्कुल सात्विक न हो जाए , मोक्ष की अवस्था के एकदम निकट न पहुंच जाए, तब तक वेदों को समझना बहुत कठिन कार्य है । दूसरी ओर , पुराणकारों ने राजाओं की कथाओं के माध्यम से वेद के जिन रहस्यों के उद्घाटन का प्रयास किया है , उन रहस्यों को क्षुद्र बुद्धि का व्यक्ति , जिसे शूद्र कहा जाता है , श्रद्धापूर्वक सुनकर रहस्यों को समझ सकता है । यह तो रही पुराणों की बात । लेकिन वर्तमान में प्रस्तुत पुराण विषय अनुक्रमणिका पढने का अधिकार किसको है ? मेरा विचार है कि वैसे तो पुराणों में रुचि रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसे पढकर पूरे वैदिक समुद्र में स्नान का आनन्द ले सकता है , लेकिन जो व्यक्ति ध्यान साधना की प्रक्रिया से गुजर चुका है , वह पुराण विषय अनुक्रमणिका के माध्यम से वैदिक समुद्र में गोते लगाकर अपनी साधना को वेदोन्मुखी, पुराणोन्मुखी बना सकता है जिसकी विगत हजारों वर्षों से आवश्यकता रही है ।
डाँ. हरिहर त्रिवेदी साहित्य वाचस्पति , काव्यतीर्थ ,एफ.आर.ए.एस. ( लन्दन ), निदेशक ( सेवा निवृत्त ) पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग , म.प्र.शासन । |