पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Riksha to Ekaparnaa) Radha Gupta, Suman Agarwal and Vipin Kumar Riksha - Rina ( Uushmaa/heat, Riksha/constellation, Rigveda, Richeeka, Rijeesha/left-over, Rina/debt etc.) Rinamochana - Ritu ( Rita/apparent - truth, Ritadhwaja, Ritambhara, Ritawaaka, Ritu/season etc. ) Ritukulyaa - Rishi ( Rituparna, Ritvija/preist, Ribhu, Rishabha, Rishi etc.) Rishika - Ekaparnaa ( Rishyamuuka, Ekadanta, Ekalavya etc.)
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Puraanic contexts of words like Rina/debt, Rita/apparent - truth, Ritadhwaja, Ritambhara, Ritawaaka, Ritu/season etc. are given here.
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ऋणमोचन पद्म ३.२६.९३ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ऋणान्त कूप का माहात्म्य ), ब्रह्म २.२९ ( ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य : कक्षीवान - पुत्र पृथुश्रवा का गौतमी में स्नान से पितृऋण से मुक्त होना ), मत्स्य १०७.२० ( प्रयाग स्थित ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य ), १९१.२७ ( नर्मदा तटवर्ती ऋणमोचन तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वामन ४१.६ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य ), वायु ७७.१०६ ( गया क्षेत्र के अन्तर्गत कनकनन्दी तीर्थ में स्नान से ऋणत्रय से मुक्ति ), १०८.८९ ( पितृरूपी जनार्दन के दर्शन से ऋणत्रय से मुक्ति का कथन ), १११.२९ ( गया में अश्वत्थ दर्शन व ब्रह्मसर में स्नान से ऋणत्रय से मुक्ति का कथन ), स्कन्द २.८.२.२२ ( अयोध्या में स्थित ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य : लोमश की ऋण से मुक्ति ), ३.१.४२.२ ( सेतु माहात्म्य के अन्तर्गत ऋणत्रय मोचन तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.८७.२ ( रेवा तट पर स्थित ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.२०८ ( ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य : ऋणत्रय से मुक्ति ), ५.३.२३१.२० ( रेवा - सागर सङ्गम पर २ ऋणमोचन तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ७.१.२२१ ( ऋणमोचनेश्वर तीर्थ का माहात्म्य ) Rinamochana
ऋत अग्नि १५२.५ (ग्रहस्थ वृत्ति के संदर्भ में ऋतामृताभ्यां इत्यादि श्लोक का उल्लेख ), नारद १.२७.३९ ( सन्ध्या कर्म में ऋतमिति मन्त्र का उल्लेख ), भविष्य १.१८६.१० ( विप्रों की वृत्तियों में ऋतामृत, ऋत, प्रमृत, प्रतिग्रह, वाणिज्य वृत्तियों का उल्लेख ), १.२१६.१७७ ( लोकों के नामों में क्रमश: अर्क लोक, गोलोक, ऋत लोक, अमृत / ब्रह्म लोक का उल्लेख ),४.१४३.३८ (महाशान्ति विधि के अन्तर्गत ऋतमस्तु इति द्वारा स्नान का निर्देश ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.२३ ( अग्नि का नाम ; संवत्सर - पुत्र, ऋतुओं के पिता ), १.२.३६.१२ (स्वारोचिष मन्वन्तर में १२ तुषित देवगण में से एक ), ३.४.१.१८ ( प्रथम सावर्णि मनु के काल में २० सुख नामक देवगण में से एक ), भागवत २.९.३३ ( ऋत में प्रतीत होने वाले अर्थ के आत्मा में प्रतीत होने पर उसे आत्मा की माया जानने का निर्देश ), ४.१३.१६ ( चक्षु मनु व नड्वला के १२ पुत्रों में से एक, ध्रुव वंश ), ७.११.१८ ( ऋत, अमृत, मृत, प्रमृत, सत्य आदि वृत्तियों की परिभाषा : उच्छ शिल वृत्ति के ऋत तथा वाणिज्य के सत्यानृत वृत्ति होने का उल्लेख ), ८.२०.२५ ( बलि द्वारा वामन के स्तनों में ऋत और सत्य के दर्शन का उल्लेख ), ९.१३.२५ ( विजय - पुत्र, शुनक - पिता, निमि वंश ), ९.१९.३८(ऋत की परिभाषा : सूनृता वाणी) ११.१९.३८ ( समदर्शन के सत्य तथा सूनृता वाणी के ऋत होने का उल्लेख ), मत्स्य ९.३६ ( १२ वें मनु का नाम ), १९६.२ ( अङ्गिरा व सुरूपा के १० पुत्रों में से एक ), लिङ्ग २.५४.२९ ( पुष्टिवर्धन देव का घृत, पय:, मधु आदि से भक्तिपूर्वक यजन करने की ऋत संज्ञा ? ; ऋत द्वारा पाशबन्धन , कर्मयोग तथा मृत्युबन्धन से मुक्त होने की प्रार्थना ), वायु ६२.४३ ( तामस मनु के पुत्रों में से एक ), ६७.१२६ ( मरुतों के तृतीय गण में से एक ), ८९.२२ ( विजय - पुत्र, सुनय - पिता, नेमि / जनक वंश ), विष्णु ४.५.३१ ( विजय - पुत्र, सुनय - पिता, निमि वंश ), स्कन्द ७.१.२०७.५३ ( श्ववृत्ति की अपेक्षा ऋतामृत द्वारा जीने का निर्देश : नित्य भक्षण ऋत, अयाचित के अमृत, वृद्धि जीवित्व के मृत, कर्षण के प्रमृत आदि होने का उल्लेख ), हरिवंश ३.३४.७ ( जगत रूपी अण्ड में स्थित ऋत नामक द्रव से जातरूप / सुवर्ण की उत्पत्ति का वर्णन ) , महाभारत आदि १.२२ ( ऋतम् : परमात्मा का सूचक ), ३.६२ ( १२ अरों, ६ नाभियों व एक अक्ष वाले चक्र के ऋत /कर्मफल को धारण करने का उल्लेख ), ७६.६४ ( गुरु के ऋत का दाता होने का उल्लेख ), उद्योग ४४.९ ( गुरु द्वारा ऋत करते हुए अमृत प्रदान करने का उल्लेख ),भीष्म ६२.१४(ऋतायन :शल्य का पिता), शान्ति ४७.५० ( अमृत - योनि परमात्मा द्वारा ऋत द्वारा साधु जनों के लिए सेतु बनाने का उल्लेख ), २७०.४६ ( ब्रह्म के ऋत, सत्य आदि होने का उल्लेख ), अनुशासन १०४.५७ ( उत्तराभिमुख होकर भोजन करने पर ऋत प्राप्त होने का उल्लेख, अन्य दिशाओं से अन्य प्राप्तियां ), आश्वमेधिक २५.१५( ऋत के प्रशास्ता ऋत्विज का शस्त्र होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ३.१.१२( आत्मा के ऋत और परब्रह्म के सत्य होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३९.१२( संवत्सर अग्नि की ऋत संज्ञा : ऋत से ऋतुओं की उत्पत्ति का उल्लेख ) Rita
ऋतजित् ब्रह्माण्ड १.२.२३.२३ ( शिशिर ऋतु में सूर्य रथ व्यूह में स्थित एक गन्धर्व ), २.३.५.९३ ( मरुतों के द्वितीय गण में से एक ), वायु ५२.२२ ( शिशिर ऋतु में सूर्य रथ व्यूह में स्थित एक ग्रामणी ), विष्णु २.१०.१६ ( माघ मास में सूर्य रथ में स्थित एक यक्ष ) Ritajit
ऋतञ्जय लिङ्ग १.२४.८६ ( १८वें द्वापर में व्यास ), वायु २३.१८१ ( वही), शिव ३.५.२० ( वही)
ऋतधामा गरुड १.८७.५० ( १२ वें मन्वन्तर में इन्द्र ), भागवत ८.१३.२७ ( १२वें रुद्र सावर्णि मन्वन्तर में इन्द्र का नाम ), ९.२४.४४ ( ऋतधाम : कङ्क व कर्णिका - पुत्र, विदर्भ वंश ), मत्स्य ९.३६ ( १३वें मनु का नाम ? ), विष्णुधर्मोत्तर १.१८७.५ ( १२वें मन्वन्तर में इन्द्र ), शिव ५.३४.५८ ( चतुर्थ सावर्णि मनु के काल में इन्द्र ), महाभारत शान्ति ३४२.६९ ( परमात्मा के ऋतधामा नाम की निरुक्ति : भूतों का सार धाम तथा विचारित ऋत होने का उल्लेख ), वा.रामायण ६.११७.७( ऋतधामा के वसुओं के प्रजापति तथा वसुओं में सर्वश्रेष्ठ होने का उल्लेख ) Ritadhaamaa Comments on Ritadhaamaa, Ritadhwaja, Ritambhara, Ritaa etc.
ऋतध्वज ब्रह्म २.३७.१९ ( आर्ष्टिषेण - पुत्र ऋतध्वज का सुश्यामा अप्सरा से समागम, वृद्धा नामक कन्या की उत्पत्ति, कालान्तर में वृद्धा का गौतम से विवाह ), भागवत ९.१७.६ ( दिवोदास -पुत्र द्युमान के शत्रुजित् , वत्स, कुवलयाश्व आदि नामों में से एक, अलर्क - पिता ), ३.१२.१२ ( एकादश रुद्रों में से एक ; एकादश रुद्रों की पत्नियों के नाम ), मार्कण्डेय २०+ ( शत्रुजित् - पुत्र ऋतध्वज द्वारा कुवलय अश्व पर आरूढ होकरपातालकेतु दानव का अनुगमन, पाताल में प्रवेश व मदालसा से विवाह, पातालकेतु आदि दानवों का वध, कुवलाश्व नाम प्राप्ति ), २२ ( पातालकेतु - अनुज तालकेतु द्वारा मदालसा को ऋतध्वज की मृत्यु का मिथ्या समाचार देना, मदालसा की पति वियोग से मृत्यु ), २३+ ( अश्वतर नाग द्वारा सरस्वती व महादेव की आराधना से मदालसा को पुत्री रूप में उत्पन्न करना, ऋतध्वज द्वारा नाग -पुत्री मदालसा को पुन: प्राप्त करना ), २५+ ( मदालसा से विक्रान्त आदि ४ पुत्रों की प्राप्ति, मदालसा द्वारा पुत्रों को निवृत्ति मार्ग की शिक्षा पर राजा द्वारा आपत्ति, मदालसा द्वारा चतुर्थ पुत्र अलर्क को प्रवृत्ति मार्ग की शिक्षा ), वामन ५९.२ ( रिपुजित् - पुत्र ऋतध्वज द्वारा पातालकेतु के वध व मदालसा प्राप्ति का संक्षिप्त वर्णन, ६४.२२ ( बंधन ग्रस्त जाबालि द्वारा अपने जन्म पर पिता ऋतध्वज द्वारा की गई भविष्यवाणी का कथन ), ६४.६२ ( जाबालि की मुक्ति के लिए ऋतध्वज द्वारा इक्ष्वाकु व इक्ष्वाकु - पुत्र शकुनि से अनुरोध ), ७२.२४ ( स्वारोचिष मनु - पुत्र ऋतध्वज के ७ पुत्रों का वृत्तान्त ), ७२.५७ ( तामस मनु - पुत्र ऋतध्वज / दन्तध्वज द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु स्वमांस का अग्नि में होम, सात मरुतों की पुत्र रूप में उत्पत्ति ), विष्णु ४.८.१४ ( प्रर्तदन का दूसरा नाम ), स्कन्द ७.१.२९४ ( निषाद द्वारा अपने जाल को सुखाने के लिए शिव मन्दिर के ध्वज दण्ड से बांधना, मृत्यु पश्चात् निषाद का राजा ऋतध्वज बनना, पूर्व आराधित अजोगन्ध शिव की पुन: प्रतिष्ठा करना ), लक्ष्मीनारायण १.३९२+ ( मदालसा प्राप्ति की कथा, तु. : मार्कण्डेय पुराण ), १.५४५.५६ ( क्रतुध्वज : निषाद द्वारा शिवमन्दिर की ध्वजा पर जाल फैलाने से क्रतुध्वज राजा बनना ), ४.१०१.९९ ( ऋतध्वजा : कृष्ण - पत्नी, शान्ता व सत्यव्रत युगल की माता ), द्र. : क्रतुध्वज Ritadhwaja Comments on Ritadhaamaa, Ritadhwaja, Ritambhara, Ritaa etc.
ऋतम्भर पद्म ५.३०+ ( तेज:पुर के राजा सत्यवान् के पिता, ऋतम्भर द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु जाबालि ऋषि से परामर्श, जाबालि से गौ माहात्म्य सुनकर गौ की सेवा करना, सिंह द्वारा गौ के वध पर अयोध्यापति ऋतुपर्ण से राम नाम माहात्म्य श्रवण, सुरभि से पुत्रता वर की प्राप्ति ), भागवत ६.१३.१७ ( ऋतम्भर/परमात्मा का ध्यान करने से इन्द्र के पाप नष्ट होने का उल्लेख ) Ritambhara Comments on Ritadhaamaa, Ritadhwaja, Ritambhara, Ritaa etc.
ऋतम्भरा भागवत ५.२०.४ ( प्लक्ष द्वीप की एक नदी ), स्कन्द ४.१.२९.३४ ( गंगा सहस्रनामों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.३०९.३१( सर्वहुत राजा की पत्नी गोऋतम्भरा का द्वितीया व्रत के प्रभाव से जन्मान्तर में आभीरी - कन्या व ब्रह्मा की पत्नी गायत्री बनना ), १.३८५.४८(ऋतम्भरा का कार्य), ४.१०१.९१ ( कृष्ण व सत्या - पुत्री ) Ritambharaa Comments on Ritadhaamaa, Ritadhwaja, Ritambhara, Ritaa etc.
ऋतवाक् देवीभागवत ०.४.६ ( अशील पुत्र के जन्म के सम्बन्ध में गर्ग मुनि से पृच्छा, पुत्र जन्म के कारणभूत रेवती नक्षत्र को शाप देकर गिराना , रेवती कन्या के जन्म की कथा ), मार्कण्डेय ७५.२ ( वही), स्कन्द ७.२.१७ ( ऋतवाक् द्वारा दुष्ट पुत्र की उत्पत्ति के कारण रेवती नक्षत्र का पातन ), महाभारत वन २६.२४ ( कृतवाक् / ऋतवाक् आदि ब्रह्मर्षियों द्वारा युधिष्ठिर का आदर करने का उल्लेख ), कर्ण ३२.५६ ( पूर्वजों द्वारा ऋतवादन के कारण शल्य की आर्तायनि संज्ञा का उल्लेख ), शान्ति २३५.१६ ( काल रूपी उदक / नदी में ऋतवाक् व मोक्ष के तीर होने का उल्लेख ), ३४२.७५ ( ऋता / सत्या / सरस्वती के परमात्मा की वाणी होने का उल्लेख ), अनुशासन ९३.११ ( दानशील पुरुष के सदैव ऋतवादी होने का उल्लेख ), १४३.३० ( ऋतवाक् आदि गुणों से युक्त वैश्य के क्षत्रियकुल में जन्म लेने का उल्लेख ), १४४.२३ ( ऋत व मैत्रीयुक्त वचन बोलने से स्वर्गगामी होने का उल्लेख ) Ritavaak Comments on Ritadhaamaa, Ritadhwaja, Ritambhara, Ritaa etc.
ऋता महाभारत शान्ति ३४१.१४ ( १८ गुणों वाले सत्त्व / रोदसी के परमात्मा की ऋता, सत्या आदि होने का उल्लेख ), ३४२.७५ ( ऋता / सत्या के परमात्मा की वाणी होने का उल्लेख ), Ritaa Comments on Ritadhaamaa, Ritadhwaja, Ritambhara, Ritaa etc.
ऋतु अग्नि १९९ ( ऋतु सम्बन्धी व्रत का वर्णन ), २८०.२२ ( ऋतु अनुसार शरीर में वात, पित्त व कफ के चय, प्रकोप व शम का वर्णन ), ३८०.४५ ( ऋतु / ऋभु : ब्रह्मा - पुत्र, स्व -शिष्य निदाघ को शिक्षा ), ३८३.२६ ( विभिन्न ऋतुओं में अग्नि पुराण श्रवण से यज्ञों के फलों की प्राप्ति का कथन ), देवीभागवत ३.२६.४ ( यमदंष्ट्र संज्ञक दो ऋतुओं शरद व वसंत में चण्डिका पूजन का विधान ), १०.१२.५२( वर्षा ऋतु की १२ शक्तियों नभश्री आदि के नामों का कथन ; अन्य ऋतुओं की भार्याओं के नाम आदि ), १२.४.९( रक्त व मांस में ऋतुओं का न्यास ), १२.१०.३८ ( ऋतु स्वरूप , वास स्थान, भार्याएं व शक्तियां ), पद्म १.२७.५६( वर्षा आदि विभिन्न ऋतुओं के जलों का अग्निष्टोम आदि विभिन्न यज्ञों के फलों से साम्य ), ब्रह्म १.३.४.७० ( पार्वती - शिव विवाह के अवसर पर ऋतुओं का आगमन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.८२( शारदीय पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१८ ( ६ ऋतुएं : निमि - पुत्र, आर्तव - पिता ), १.२.१३.२० ( आर्तव - पिता, स्थावर व जङ्गम प्राणियों के पितामह ), १.२.१३.२६ ( पितरों का रूप, कारण ), १.२.२१.१२५( २ पक्षों से मास, २ मासों से ऋतु, ३ ऋतुओं से अयन के निर्माण का उल्लेख ), १.२.२४.१४१( ऋतुओं में शिशिर के आदि होने का उल्लेख ), १.२.२८.१४ ( पितामह का रूप ), ३.४.१.१४ ( २० सुतप नामक देवगण में मे एक ), ३.४.१.१६ ( २० अमिताभ नामक देवगण में से एक ), भागवत ८.२.९ ( गज - ग्राह कथा के संदर्भ में ऋतुमान् उद्यान में स्थित सरोवर का वर्णन ; उद्यान की शोभा का वर्णन ), १०.२०( व्रज में वर्षा व शरद ऋतु का वर्णन ; शरद ऋतु में कृष्ण के वेणु गीत का वर्णन ), १०.२२( हेमन्त ऋतु में गोपियों द्वारा कात्यायनी व्रत व कृष्ण द्वारा चीर हरण ), वराह १२४ ( ऋतु उपस्कर : ऋतु अनुसार पुष्पों से द्वादशी तिथि को विष्णु की पूजा का विधान ), वामन २.१ ( शरद ऋतु की शोभा का वर्णन ), वायु २१.३० ( छठे कल्प का नाम ; सप्तम कल्प का क्रतु नाम ), २१.३५/१.२१.३२( १६वें षड~ज नामक कल्प में ब्रह्मा के शिशिर, हेमन्त, निदाघ आदि पुत्रों का उल्लेख ), २९.१८(ऋतु का विभु से साम्य?), ३०.७ ( ऋतवों की पितर व देव संज्ञा का उल्लेख ; मधु माधव आदि मास युगलों की क्रम से रस, शुष्मी, जीव, सुधावन्त, मन्युमन्त व घोर संज्ञा ), ३०.२२( ऋतु की निरुक्ति : ऋत् से उत्पत्ति ; ऋतुओं के आर्तव रूप ५ पुत्रों के विषय में कथन ), १००.१५ ( २० सुतप नामक देवगण में से एक ), विष्णु ५.१०.१( वर्षा ऋतु में राम द्वारा प्रलम्ब असुर के वध की कथा ), ५.१०.१२( व्रज में शरद ऋतु का वर्णन; शरद ऋतु की योगी के प्राणायाम आदि से तुलना ), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.१० ( विराट् पुरुष के दन्तों के मास - ऋतु होने का उल्लेख ), १.२४३+ ( राम द्वारा शत्रुघ्न को प्रावृट् , शरद, हेमन्त व शिशिर ऋतुओं की शोभा का वर्णन ), १.२४५( राम द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन ), ३.४२.७४ ( वसन्त आदि ऋतुओं के रूप निर्माण का कथन ), ३.१५६ ( षण्मूर्ति व्रत : ऋतु अनुसार फल, पुष्प व मधुर आदि रसों से मूर्ति पूजा के विधान का कथन ), ३.३१७.४ ( ऋतु अनुसार दान द्रव्य का कथन ), शिव ५.१२.१२ ( विभिन्न ऋतुओं में तडाग में जल एकत्र करने के फल का ), ७.१.१७.४५( ऋतुओं के पितर होने का कथन ; ऋतु रूप पितरों का वर्णन ), स्कन्द १.२.१३.१७३ (ऋतुओं द्वारा दूर्वांकुर लिंग पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग ), १.२.६२.२६( ऋतुंसन : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ५.३.७८.२९ ( ऋतुओं द्वारा तरुओं को पुन: - पुन: युवा करने का उल्लेख ), ५.३.१०३.६२( ब्रह्मा के वर्षा, विष्णु के हेमन्त, रुद्र के ग्रीष्म रूप होने का कथन ), हरिवंश २.१६( व्रज में शरद ऋतु का वर्णन ), २.१९.५१( इन्द्र द्वारा शरद ऋतु का वर्णन ), महाभारत उद्योग ८३.६( कौरवों को समझाने के लिए कृष्ण द्वारा शरदन्त में रेवती नक्षत्र में मैत्र मुहूर्त में प्रस्थान का कथन ), अनुशासन ४३.५( अक्षों से खेल रहे विपुल द्विज द्वारा ६ पुरुषों रूपी ६ ऋतुओं का दर्शन ), योगवासिष्ठ ६.२.७.१८ ( संसार रूपी वृक्ष की शाखाओं का रूप ), वा.रामायण ३.१६ ( लक्ष्मण द्वारा पंचवटी में हेमन्त ऋतु का वर्णन ), ४.२८ ( राम द्वारा किष्किन्धा में वर्षा ऋतु का वर्णन ), ४.३० ( राम द्वारा शरद ऋतु का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.३६.३२( ऋतुदान काल में पिता की मन:स्थिति का गर्भ की प्रकृति पर प्रभाव का वर्णन ; ऋतुदान हेतु काल विचार आदि ), १.३९.२( ६ ऋतुओं की पितर संज्ञा ), १.३९.९( संवत्सर रूप काल के पुत्रों के रूप में ऋतुओं तथा ऋतुओं के पुत्रों के रूप में आर्तवों/मासों का कथन ), १.३७४.८९ ( ऋतुदान द्वारा कन्या या पुत्र प्राप्त होने के विकल्प का कथन ), १.४८४.४२ ( पर्वकालों में ऋतुदान के निषेध के संदर्भ में जाबालि व पुरुहूता का वृत्तान्त ), १.५५०.१०१ ( ऋतुकाल पर परमात्मा के साथ संगम व्यर्थ न होने देने का निर्देश ) Ritu |