AYURVEDA TREATMENTS

विपिन कुमार

पञ्चभद्र(ज्वर हेतु)

यकृत सिरोसिस

दीपनीय गण

आरग्वध गण

कृमि उपचार

 

पंचभद्र

आयुर्वेद में पंचभद्र योग का प्रयोग वात-पित्त से उत्पन्न ज्वर की शान्ति के लिए दिया गया है। दुर्भाग्य से यह योग अभी तक बाजार में उपलब्ध नहीं है। पंचभद्र योग के पांच घटक हैं नागरमोथा, गिलोय, पित्तपापडा, सोंठ व चिरायता। पंचभद्र के सम्यक् प्रयोग के लिए यह आवश्यक है कि इसके घटकों के गुणों का सम्यक् ज्ञान हो। ऐसा अनुमान है कि नागरमोथा पंचभद्र योग के घटकों में शीतलता लाता है। गिलोय व चिरायते की प्रकृति उष्ण है। पित्तपापडा शीतल है। चिरायता बहुत कडवा होता है और कडवी वस्तु लगातार सेवन किए जाने पर हानि भी करती है। ऐसा पाया गया है कि यदि पंचभद्र में चिरायते के स्थान पर वासा रख दिया जाए तो उससे रक्त में प्लेटलैट तथा हीमोग्लोबीन में तो वृद्धि होती है, लेकिन दोष निवारण की क्षमता समाप्त हो जाती है। दोष से तात्पर्य है कैंसर आदि से जो श्वेत रक्त कणों की मात्रा में वृद्धि का कारण बनते हैं। अथवा अन्य किसी भी दोष से जो रोग को उत्पन्न कर रहे हों। पंचभद्र को बाजार में बिकने योग्य बनाने के लिए नागरमोथा, पित्तपापडा, सोंठ व चिरायता को पीस कर चूर्ण बनाया जा सकता है। ताजी गिलोय को काटकर एक सेंटीमीटर लम्बे टुकडे कर लेने चाहिएं और फिर उनको कूट लेना चाहिए। फिर मिक्सी में डालकर पानी के साथ मिश्रण बना लेना चाहिए। फिर उस मिश्रण को स्टेनलैस स्टील की छलनी में डालकर छान लेना चाहिए और द्रव को अन्य चार घटकों के चूर्ण में मिलाकर सुखा लेना चाहिए। यदि चाहें तो गिलोय के बचे ठोस भाग में पुनः पानी मिलाकर मिश्रण बनाया जा सकता है। गिलोय की एक से अधिक भावनाएं भी दी जा सकती हैं। इससे पंचभद्र योग में गिलोय की सम्यक् मात्रा का समावेश किया जा सकता है। जब तक पञ्चभद्र का स्वाद बहुत अधिक कडवा हो, तब तक गिलोय की भावनाएं देते रहना चाहिए। चार-पांच भावनाओं के पश्चात् पञ्चभद्र सेवन योग्य हो जाता है।  

पंचभद्र के घटकों का अनुपात कितना हो, इसका कोई उल्लेख नहीं है। चार घटकों का अनुपात बराबर लिया जा सकता है, लेकिन चिरायते का अनुपात कम-अधिक किया जा सकता है।

प्रयोग सं. १ ज्वर में पंचभद्र के स्थान पर केवल गिलोय का प्रयोग किया गया। इससे ज्वर तो उतर गया लेकिन दूसरे दिन वह ज्वर फिर उभर आया। ज्वर पूर्णरूपेण तभी शान्त हुआ जब पंचभद्र का सेवन किया गया।

प्रयोग सं २ कैंसर की अन्तिम अवस्था में कैंसर फैलने पर रक्त में द्रव बनने लगता है जो अन्ततः फेफडों की झिल्लियों में एकत्र हो जाता है और जिसको इंजेक्शन की सुई द्वारा निकलवाना पडता है। इस द्रव को सुखाने के लिए आरग्वध गण व दीपनीय गण ओषधियों के मिश्रण से योग बनाया गया। लेकिन यह योग बहुत तीक्ष्ण है और इससे गुदा में फफोले बनने का खतरा है। इसको मृदु करने के लिए इसके साथ कभी बिना चिरायते का और कभी चिरायते वाले पंचभद्र का मिश्रण किया गया। पंचभद्र की मात्रा अधिक ली गई, आरग्वध-दीपनीय योग की कम। यदि बिना चिरायते वाले पंचभद्र का उपयोग किया जाए तो केवल द्रव ही सूखेगा। यदि चिरायते वाले पंचभद्र का उपयोग किया जाए तो (अनुमान है कि) कैंसर पर भी प्रभाव पडेगा।

प्रयोग सं. ३ -- पंचभद्र को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इसमें आरग्वध/अमलतास की एक भावना दी गई। इससे इसका स्वाद भी कम कडुवा हो गया।