पुराण विषय अनुक्रमणिका

(भूमिका)

Puraanic Subject Index

(Introduction)

by

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar

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Dedication

Patrons of Puraanic Index

Foreword by Dr. Pushpendra Kumar

Foreword by Dr. Harihar Trivedi

Foreword by Dr. Fatah Singh

Foreword by Sh. Vishwambhar Dev Shastri

Introduction to  published parts of index

Criticism of the first published part of index

List of Puraanas and Publishers

About the authors

 

 

Foreword by Shri Vishwambhar Dev Shastri

 

प्राक्कथन

यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते तया मामद्य मेधाविनं कुरु ।।

परमात्मा से मेधा बुद्धि की प्रार्थना की गईमत्वा कर्माणि सीव्यति , जो मनुष्य मनन करके कार्यों को करने में तत्पर होता है , वही मानव हैसृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही साथ परमात्मा ने जीवमात्र के हित के लिए अपना ज्ञान दियाइस ज्ञान के द्वारा मानव ने अपने को सुखी बनाने के साधनों का निर्माण कियाअतः जहाँ पशु योनि केवल भोग भोगने में ही तत्पर है , वहाँ मनुष्य भोग और कर्म प्रधान हैवेदों से आचार - विचार , ज्ञान - विज्ञान , विश्वबन्धुत्व तथा प्राणिमात्र आदि के कल्याणकारक सिद्धान्तों का आविष्कार हुआ हैइन आदर्शों की छाप किसी समय सारे विश्व में थी और भारत जगद्गुरु बन गया थाभारतवर्ष को पहचानना है तो संस्कृत साहित्य को अपनाना आवश्यक है

कतिपय विशेष विभूतियां सामने आती हैं और इस भौतिकवाद की चकाचौन्ध से प्रभावित होकर मानव संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करने में तत्पर रहती हैंआज मेरे सम्मुख लेखकद्वय का प्रयास वर्तमान पुस्तक के रूप में हैलेखकों की जिज्ञासा को समझा कि उनका प्रयास है कि वैदिक शब्दों की व्याख्या के लिए पहले पुराणों में बिखरे हुए वैदिक शब्दों को , जो कथा रूप में प्रक किए गए हैं , उनको समझना ठीक हैदेखा जाए तो वेदों में कोई लौकिक कथा और इतिहास नहीं है , उनमें सार्वभौमिक सिद्धान्त हैंलेखकद्वय ने बृहत् कार्यभार ग्रहण कियाविचित्र बात यह है कि एक ही माता - पिता के इन दोनों भाई - बहिनों पर आस्तिक और संस्कारित परिवार का प्रभाव पडायह प्रभाव इतना पडा कि पुत्री को संस्कृत की विदुषी बनते देख इनके पिता श्री बलवीर सिंह जी कुशल व्यापारी होते हुए भी आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर हो गए , पुत्र भी वैराग्य की ओर अग्रसर हो बिना संस्कृत पढे ही स्वाध्यायरत हो वेदों की ओर प्रवृत्त हो गयादेवबन्द का सौभाग्य है - जिस भूमि में इन दोनों ने जन्म लियासौ.राधा गुप्ता प्रारम्भ से ही मेधावी छात्र रहीएम.. संस्कृत पढते समय ही वेद, निरुक्त , दर्शन आदि को जैसे ही पढा , दूसरे दिन बडी सरलता के साथ सुना कर ही अगला पा पढना नित्य नियम थायह प्रखर बुद्धि निन्तर वृद्धि करती करती कठिन गृहस्थ भार को सुगहिणी बन कर अपने परिवार को भी योग्य बना संस्कृत का स्वाध्याय कर पीएच.डी. और डी.लिट्. की उपाधियों से अलंकृत हुईएक आदर्श विदुषी का अनुकरणीय साहस तप से कम नहीं हैचि.विपिन का स्वभाव भी छात्र अवस्था से तार्किक थाअपनी अवस्था के अनुसार प्रश्नों को पूछना - जब तक सन्तुष्ट हो जाता था , तब तक चैन नहीं मिलता थाएक सम्पन्न घराने का एम.एस.सी. युवक अन्य युवकों की भांति भौतिकवादी बन सकता था , परन्तु आध्यात्मिक प्रभाव ऐसा पडा कि वैदिक ज्ञान की ओर प्रवृत्ति हो गईसाथ ही दिल्ली में डा. फतहसिंह जी के सान्निध्य से वैदिक छात्र ही बन गया और वैदिक तत्व मंजूषा ( पुराणों में वैदिक संदर्भ ) प्रस्तुत कर दीगुरु भाव रूप में दोनों ने अपनी कृतियां मुझे भेंट की

लेखकद्वय ने यह पुराण विषय अनुक्रमणिका लिखने में अथक प्रयास कियाप्रायः २२ पुराणों , संहिता , श्रौत और गृह्य सूत्रों , ब्राह्मण ग्रन्थों, उपनिषदों, ऋग्वेद, अथर्ववेद, निरुक्त आदि का स्वाध्याय कर विशेष टिप्पणियों द्वारा शब्दों को सरलता से समझाने का प्रयास सराहनीय है जो अनुसंधान करने वालों के लिए पथप्रदर्शक बनेगामैं अपने इन लेखकद्वय के भविष्य की उज्ज्वल कामना करता हुआ इनके दीर्घजीवन और यशस्वी बनने की प्रार्थना करता हूं

शमिति

ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी , वि. सम्वत्~ २०५५

 विश्वम्भरदेव शास्त्री

 सेवामुक्त प्रवक्ता

 स्वतन्त्रता सेनानी

 शिक्षक नगर

 देववृन्द