PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Mitrasaha, Mitraavaruna, Mithi, Mithilaa, Meena / fish etc. are given here. मित्रसह पद्म ६.१३६.१२(मित्रसह/सौदास द्वारा साभ्रमती में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्त होने का कथन), भागवत ९.९.३६(सौदास का उपनाम), वायु ८८.१७६/ २.२६.१७६ (राजा कल्माषपाद का दूसरा नाम), शिव ४.१०(मित्रसह का वसिष्ठ के शाप से कल्माषपाद होना, शक्ति का भक्षण, गोकर्ण स्नान से मुक्ति), स्कन्द ३.३.२(मित्रसह का कल्माषपाद बनना, शक्ति का भक्षण करना आदि), ६.५३.१७(राजा, सौदास - पिता), हरिवंश ३.१०४.१०(मित्रसह विप्र द्वारा तप से जनार्दन पुत्र की प्राप्ति), वा.रामायण ७.६५.१७(सुदास - पुत्र, अपर नाम वीरसह, पैरों के कल्मषयुक्त हो जाने से कल्माषपाद नाम से प्रसिद्धि ) mitrasaha
मित्रा भागवत ३.४.३६(मैत्रेय की माता के रूप में मित्रा का उल्लेख )
मित्रायु विष्णु ३.६.१७(रोमहर्षण के ६ शिष्यों में से एक), ४.१९.६९(दिवोदास - पुत्र, च्यवन - पिता )
मित्रावरुण देवीभागवत ६.१४.५६(राजा द्वारा शापित होने पर वसिष्ठ का पिता ब्रह्मा के निर्देशानुसार मित्रावरुण की देह में प्रवेश, उर्वशी दर्शन से मित्रावरुण का वीर्य स्खलित होना, वीर्य का कुम्भ में गिरना, समयानुसार अगस्त्य व वसिष्ठ का जन्म), भविष्य ४.११८(मित्रावरुण देवों द्वारा तप, उर्वशी द्वारा क्षोभ की उत्पत्ति, कुम्भ में वीर्य विसर्जन, वसिष्ठ और अगस्त्य की उत्पत्ति), भागवत २.१.३२(भगवान् के विराट् स्वरूप में मित्रावरुण के वृषण रूप होने का उल्लेख), ६.१८.५(मित्रावरुण व उर्वशी से अगस्त्य व वसिष्ठ की उत्पत्ति का कथन), ९.१३.६(मित्रावरुण व उर्वशी से प्रपितामह/वसिष्ठ? की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य ६१.२७(मित्र व वरुण में उर्वशी को प्राप्त करने की स्पर्द्धा, मित्र द्वारा उर्वशी को शाप, मित्र व वरुण के वीर्य से ऋषिद्वय की उत्पत्ति का कथन), १४५.११०(सात वासिष्ठ ब्रह्मवादियों में से एक), १६६.८(मित्रावरुण ऋत्विज की पुरुष के पृष्ठ से उत्पत्ति का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३१८.३९(मित्र के पुरुष तथा वरुण के प्रकृति होने का उल्लेख), मार्कण्डेय १११/१०८(सप्तम मनु द्वारा विशिष्टतर पुत्र की प्राप्ति हेतु मित्रावरुण का यज्ञ, यज्ञ दूषित होने से इला नामक कन्या की प्राप्ति, मनु द्वारा मित्रावरुण से कन्या को पुत्र रूप में परिणत करने की प्रार्थना, इला की सुद्युम्न रूप में परिणति), विष्णु ४.१.८(मनु द्वारा पुत्र कामना से की गई मित्रावरुण इष्टि से कन्या इला के जन्म का कथन), ४.५.११(मित्रावरुण व उर्वशी से वसिष्ठ के पुनर्जन्म का कथन), शिव ३.६.५१(शिलाद - पुत्र नन्दी के दर्शन हेतु मित्रावरुण संज्ञक मुनियों का शिलाद के आश्रम में आगमन, नन्दी की अल्पायु का ख्यापन), स्कन्द ४.२.८४.७२(मैत्रावरुण तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.६०.३(मित्रावरुण - पुत्र अगस्त्य द्वारा परमेश्वरी देवी को माहित्था नाम प्रदान, नाम हेतु का कथन, अगस्त्य द्वारा शोषणी विद्या की साधना, समुद्र का शोषण ), शौ.अ. ५.२४.५(मित्रावरुण वृष्ट्याधिपती), mitraavaruna/ mitravaruna Comments on Mitraavaruna by Dr. Fatah Singh मित्रावसु कथासरित् ४.२.४७(सिद्धराज विश्वावसु - पुत्र, जीमूतवाहन - मित्र, जीमूतवाहन को मलयवती नामक स्वसा प्रदान), ४.२.१७७(मित्रावसु द्वारा मलयवती का जीमूतवाहन से विवाह), १२.२३.३९(विश्वावसु - पुत्र, जीमूतवाहन - मित्र ) mitraavasu/ mitravasu
मित्रेयु द्र. मित्रयु, मित्रायु
मिथि देवीभागवत ६.१५.२६(निमि - पुत्र, अपर नाम जनक, अरणि मन्थन से उत्पन्न होने के कारण मिथि नाम धारण, मिथिला नगरी का निर्माण), ब्रह्माण्ड २.३.६४.४(निमि की देह के अरणि मन्थन से मिथि/जनक की उत्पत्ति का कथन), वराह २०८(निमि - पुत्र, रूपवती - पति, भोजनार्थ पत्नी के साथ कृषि उद्योग, पतिव्रता प्रभाव से सूर्य की प्रसन्नता), वायु ८९.४/२.२७.४(निमि की देह के मन्थन से मिथि/जनक की उत्पत्ति का कथन), विष्णु ४.५.२३(वही), वा.रामायण १.७१.४(निमि - पुत्र, प्रथम जनक के पिता), ७.५७.२०(निमि - पुत्र, मन्थन से उत्पन्न होने के कारण मिथि नाम धारण, अपर नाम विदेहराज जनक), लक्ष्मीनारायण १.३६२(निमि - पुत्र, रूपवती भार्या, भोजनार्थ पत्नी के साथ कृषि उद्योग, पतिव्रता प्रभाव से सूर्य की प्रसन्नता ) mithi
मिथिला गर्ग ५.१७.३१(उद्धव से कृष्ण का संदेश सुनकर मिथिलावासिनी स्त्रियों के उद्गार), ७.१६(प्रद्युम्न का मिथिलापुरी में गमन, राजा धृति द्वारा पूजन), देवीभागवत ६.१५.२९(निमि - पुत्र मिथि द्वारा मिथिला नगरी का निर्माण), ब्रह्माण्ड २.३.६४.६(मिथि के नाम पर मिथिला नाम प्रथन का उल्लेख), २.३.७१.८०(स्यमन्तक मणि न मिलने पर बलराम द्वारा मिथिला में प्रवेश करने तथा दुर्योधन को गदा की शिक्षा देने का कथन), भागवत ९.१३.१३(निमि - पुत्र मिथिल/जनक द्वारा मिथिला नगरी के निर्माण का उल्लेख), १०.५७.२०(मिथिला के उपवन में पलायन कर रहे शतधन्वा के अश्व के पतन का उल्लेख), वायु ९६.७४/२.३४.७४(स्यमन्तक मणि न मिलने पर बलराम द्वारा मिथिला में प्रवेश करने तथा दुर्योधन को गदा की शिक्षा देने का कथन), ९९.३२४/२.३७.३१८(भविष्य में २८ मैथिलों द्वारा राज्य करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३४७.५९(मथुरा में वैकुण्ठ तीर्थ में स्नान से मिथिलावासी ब्राह्मण की ब्रह्महत्या पाप से मुक्ति का कथन ) mithilaa
मिथु ब्रह्म २.५७(मिथु दानव द्वारा यज्ञ के यजमान आर्ष्टिषेण का पुरोहित उपमन्यु सहित हरण, नन्दी द्वारा मिथु का वध, आर्ष्टिषेण आदि की रक्षा ) mithu
मिथुन ब्रह्माण्ड १.१.४.१३(ब्रह्मा के बुद्धि से मिथुन का उल्लेख), महाभारत अनुशासन ४२.१७(विपुल ब्राह्मण द्वारा वन में नर मिथुन का दर्शन व उनके वार्तालाप का श्रवण), ४३.३(मिथुन के अहोरात्र होने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१२१.९७(मिथुन राशि हेतु ब्रह्मा द्वारा क,छ,घ वर्ण प्रदान का उल्लेख ) mithuna
मिथ्या योगवासिष्ठ ६.१.४१(जगत् मिथ्यात्व का प्रतिपादन), ६.१.११२-११३(मायायन्त्रमय पुरुष द्वारा सीमित आकाश की रक्षा करने के उपाख्यान से मिथ्या पुरुष का प्रतिपादन ) mithyaa
मिलिन्द लक्ष्मीनारायण २.१९२.२५(श्रीहरि द्वारा अङ्गराज द्वारा पालित मिलिन्द नगरी में आगमन व प्रजा को उपेदश आदि )
मिश्र नारद २.६५.८१(मिश्र तीर्थ का माहात्म्य), पद्म ३.२६.८६(मिश्र तीर्थ का माहात्म्य), mishra
मिश्रकेशी ब्रह्माण्ड २.३.७.६(२४ मौनेया अप्सराओं में से एक), भागवत ९.२४.४३(मिश्रकेशी अप्सरा व वत्सक से वृक आदि पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य १६१.७५(हिरण्यकशिपु की सेवा करने वाली अप्सराओं में से एक), वराह १०.७६(प्रहेतृ असुर - कन्या, राजा दुर्जय की भार्या बनकर सुदर्शन नामक पुत्र को उत्पन्न करने का कथन), वायु ६९.५/२.८.५(३४ मौनेया अप्सराओं में से एक ) mishrakeshee/ mishrakeshi
मिष्ट लक्ष्मीनारायण १.३१५.६१(मिष्टादेवी : गोलोक में कृष्ण के मुकुट की कल्गि का अवतार), १.३८५.५२(मिष्टा का कार्य), ४.४८(मिष्टासव नामक मद्य व्यवसायी द्वारा कथा श्रवण हेतु नगरान्तर गमन, मार्ग में उष्ट्रारोही श्रेष्ठी रूप में नारायण द्वारा मिष्टासव की रक्षा का वृत्तान्त ) mishta
मिहिर ब्रह्मवैवर्त ३.१९.२६(मिहिर सूर्य से स्कन्ध की रक्षा की प्रार्थना), भविष्य ३.४.८.११८(पूषा सूर्य के अंश व रुद्रपशु - पुत्र मिहिराचार्य द्वारा लङ्का में ज्योतिष शिक्षा प्राप्ति की कथा ) mihira
मीड द्र. प्रमीड
मीढ ब्रह्माण्ड २.३.७१.१९(मीढ~वान् : धृष्टि व माद्री के ४ पुत्रों में से एक), भागवत ३.१४.३४(शिव की मीढुष संज्ञा का प्रयोग), ४.७.६(दक्ष के कटे सिर को जोडने के संदर्भ में शिव की मीढुष्टम, मीढ~वान् संज्ञाओं का प्रयोग), ६.१८.७(मीढुष : पौलोमी व इन्द्र के ३ पुत्रों में से एक), ९.२.१९(मीढ~वान् : ऋक्ष - पुत्र, कूर्च - पिता, मनु - पुत्र नरिष्यन्त वंश ) meedha
मीन गरुड १.२१७.१७(विश्वासघात के कारण प्राप्त योनि), नारद १.६६.११५(मीनेश की शक्ति शङ्खिनी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५३(लिपि न्यास प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता का नाम), भागवत ३.२.८(यादवों की मीन से उपमा, चन्द्रमा/उडुप के जल में निवास करते हुए मीनों द्वारा न पहचानने का उल्लेख), ११.७.३४(दत्तात्रेय के गुरुओं में से एक), १३.४.१५माहात्म्य (मीन प्रकार के कथा श्रोता के लक्षण), मार्कण्डेय १५.७(विश्वासघाती द्वारा मीन योनि प्राप्ति का उल्लेख), वायु १०५.४६/२.४३.४४(सूर्य के मीन राशि में होने पर गया में श्राद्ध के महत्त्व का उल्लेख), स्कन्द ४.१.२९.१३६(चञ्चल लोचना, गङ्गा सहस्रनामों में से एक), महाभारत शान्ति ३०१.६५(दुःख रूपी जल में व्याधि, मृत्यु रूप ग्राह, तम: कूर्म व रजो मीन आदि को प्रज्ञा से तरने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१०८.४८(मीनकङ्गू नदी के तट पर ब्रह्मा के वैष्णव मख के आयोजन का वृत्तान्त), २.१२१.१०१(ब्रह्मा द्वारा मीन राशि हेतु द,च,झ,य वर्ण प्रदान करने का उल्लेख), २.२०७.८१+ (श्रीहरि का रायरणजित् भूप की नगरी मीनार्ककृष्ण में आगमन व उपेदश आदि ) meena/ mina
मीना ब्रह्माण्ड २.३.७.४१४(मीना व अमीना : ऋषा की ५ पुत्रियों में से २, मकर, पाठीन आदि सन्तानों के नाम), वायु ६९.२९१/२.८.२८५(ऋषा की पुत्रियों में से एक, मकरों, पाठीनों, तिमियों व रोहितों की माता ) meenaa
मीनाक्षी देवीभागवत ७.३८.११(चिदम्बरम् पीठ में मीनाक्षी देवी की स्थिति का उल्लेख), ८.६.२०(मीनाक्षी देवी के विभिन्न नाम ) meenaakshee/ meenakshi
मीमांसा देवीभागवत १.१.१४(मीमांसा के राजस होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३५.८७(१४ विद्याओं में से एक), भविष्य ३.२.३०(यजुष् - पुत्र, चन्द्रगुप्त से ब्रह्मचर्य विषयक संवाद), मत्स्य ३.४(तपोरत ब्रह्मा के मुख से नि:सृत शास्त्रों में से एक), ५३.६(हयग्रीव अवतार द्वारा उद्धार किए गए शास्त्रों में से एक), वायु ६१.७८(१४ विद्याओं में से एक), विष्णु ३.६.२७(१४ विद्याओं में से एक), ५.१.३८(शास्त्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.४५(मीमांसा के सोम अधिदेवता होने का उल्लेख ) meemaansaa/meemaamsaa/ mimansa
मीरा भविष्य ३.४.२२.४१(मीरा भक्त के पूर्व जन्म में मानकार होने का उल्लेख ) meeraa/ mira |