PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
Puraanic contexts of words like Maatangi, Maatali, Maataa / mother, Maatrikaa etc. are given here. माण्डूकि ब्रह्माण्ड १.२.३२.३(८६ श्रुतर्षियों में से एक), १.२.३४.२८(इन्द्रप्रमति द्वारा माण्डूकेय को तथा माण्डूकेय द्वारा पुत्र सत्यस्रवा को संहिता अध्यापन का उल्लेख), १.२.३५.५१(माण्डुक : कृत के २४ सामग शिष्यों में से एक), भागवत १२.६.५६(इन्द्रप्रमिति द्वारा माण्डूकेय को स्वसंहिता अध्यापन कराने का उल्लेख, देवमित्र - गुरु), मत्स्य १९५.२१(माण्डूक : भार्गव गोत्रकार ऋषियों में से एक), विष्णु ३.४.१९(इन्द्रप्रमिति द्वारा स्व पुत्र माण्डुकेय को संहिता अध्यापन कराने का उल्लेख), स्कन्द १.२.४२.२९(हारीत वंशोद्भव द्विज, इतरा - पति, ऐतरेय - पिता), लक्ष्मीनारायण १.५०२.५७(माण्डव्य द्वारा दीर्घिका के कुष्ठी पति माण्डूक्य को सूर्योदय से पूर्व मरण का शाप, दीर्घिका द्वारा रक्षा ) maandooki/maanduuki/ manduki
मातङ्ग ब्रह्माण्ड २.३.७.१३४(खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक), ३.४.३१.८८(मतङ्ग मुनि के पुत्र मातङ्ग द्वारा मन्त्रिणी देवी की उपासना से वर प्राप्ति, मातङ्गी - पिता), मत्स्य १४८.९६(इन्द्र के ध्वज पर हेम मातङ्ग चिह्न का उल्लेख), वराह १४०.५९(मातङ्ग तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वायु ६९.१६५/२.८.१५९(खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१(संगीत के अन्तर्गत १५ गान्धारों में से एक), शिव ३.१७.१०(शङ्कर का नवम अवतार ) maatanga/ matanga
मातङ्गी नारद १.८७.१०१(दुर्गा - अवतार, मातङ्गी के मन्त्र विधान का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.३१.१०४(मन्त्रिणी देवी के वरदान स्वरूप मातङ्ग व सिद्धिमती को पुत्रियों की प्राप्ति, मातङ्गी नामकरण), मत्स्य १७९.२७(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.१०(मातङ्गिनी शान्ति के शुक्ल वर्ण का उल्लेख), शिव ३.१७.१०(शिव के नवम मातङ्ग नामक अवतार की शक्ति का नाम), स्कन्द ३.२.१८(मातङ्गी की उत्पत्ति, कर्णाटक दैत्य से युद्ध, पूजा विधि), वा.रामायण ३.१४.२२(कश्यप व क्रोधवशा की १० सन्तानों में से एक, मातङ्ग/हस्ती - माता), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२६(मञ्जुला व कृष्ण की कन्या मातङ्गिनी व पुत्र महेश्वर का उल्लेख), कथासरित् १४.४.१०१(नरवाहनदत्त का पत्नियों, मन्त्रियों सहित मातङ्गपुर नामक नगर में गमन, धनवती द्वारा आदर - सत्कार), १६.२.८०(आनन्दवर्धन नामक राजकुमार की उत्पलहस्त नामक मातङ्ग की कन्या सुरतमञ्जरी पर आसक्ति ) maatangee/ matangi
मातरिश्वा वायु १०१.२९/२.३९.२९(मातरिश्वा आदि गण की अन्तरिक्ष में भुवर्लोक में स्थिति का उल्लेख), १०३.५८/२.४१.५८(ब्रह्मा द्वारा ब्रह्माण्ड पुराण को मातरिश्वा को प्रदान करने व मातरिश्वा द्वारा उशना को प्रदान करने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.३३(गरुड कुल के पक्षियों में से एक ) maatarishvaa/ matarishva
मातलि पद्म २.६४+ (मातलि द्वारा ययाति से स्वर्ग गमन का अनुरोध, पृथिवी के दुःख का वर्णन, ययाति द्वारा अस्वीकृति), २.७२(इन्द्र के सारथि मातलि द्वारा ययाति से स्वर्ग गमन का अनुरोध, ययाति द्वारा अस्वीकृति), भागवत ८.११.१६(जम्भ से युद्ध में इन्द्र द्वारा ऐरावत वाहन को त्याग कर मातलि द्वारा संचालित रथ पर आरूढ होने का कथन, जम्भ द्वारा मातलि पर प्रहार), ९.१०.२१(राम - रावण युद्ध में मातलि द्वारा राम के लिए रथ प्रस्तुत करने का कथन), वामन ६९.१३२(शीला व शमीक - पुत्र, इन्द्र का सारथी बनना), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४३(इन्द्र - सारथि, गुणकाशी - पिता), स्कन्द ५.३.३६.४(वज्रधर - पुत्र, पिता के शाप से पृथिवी पर दारु सूत के रूप में जन्म), वा.रामायण ७.२८.२३(जयन्त के प्रणाश तथा देवों के पलायन को देखकर इन्द्र द्वारा सारथि मातलि को रथ आनयन की आज्ञा, मातलि का युद्ध भूमि में पदार्पण), कथासरित् २.१.१३(इन्द्र द्वारा अपने सारथि मातलि का दूत रूप में शतानीक के पास सहायतार्थ प्रेषण), १०.३.६५(इन्द्र द्वारा मातलि के माध्यम से सोमप्रभ हेतु उच्चैःश्रवा - पुत्र आशुश्रवा का प्रेषण ) maatali/ matali
माता देवीभागवत ७.३०.७८ (कायावरोहण तीर्थ में देवी की माता नाम से स्थिति का उल्लेख), १२.६.१२२(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म १.१५(माता के भूलोक की स्वामिनी होने का उल्लेख), १.५०(माता के तीर्थों का रूप होने का उल्लेख), २.८.५९(पर का ज्ञान देने वाली प्रज्ञा व सुमति की संज्ञा), ब्रह्मवैवर्त्त ३.८.४६(गुरु - पत्नी आदि विविध माताओं का कथन), भविष्य १.१८५.३(मातृ श्राद्ध की विधि), ३.४.१८.२७(विष्णु द्वारा स्वमाता को पत्नी? रूप में स्वीकार करने से श्रेष्ठता प्राप्ति का उल्लेख), भागवत ६.७.२९(माता के पृथिवी की मूर्ति होने का उल्लेख), मत्स्य १०.८(वेन के शरीर के माता के अंश के मन्थन से कृष्ण वर्ण वाली म्लेच्छ जातियों के उत्पन्न होने का उल्लेख), १३.४४(सरस्वती में देवी की देवमाता नाम से स्थिति का उल्लेख), १३.४६(सिद्धपुर पीठ में देवी की माता नाम से स्थिति का उल्लेख), ९३.५३(धर्म की पत्नियों कीर्ति, लक्ष्मी आदि का माताओं के रूप में उल्लेख), २००.१२(मातेय : वसिष्ठ वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), २११.२६(दक्षिणाग्नि व पृथिवी का रूप), वायु ६९.२९१/२.८.२८५ (ऋषा की ५ कन्याओं में से एक, ग्राह, निष्क, शिशुमार आदि की जननी), विष्णुधर्मोत्तर १.६३.५१(माता शब्द की निरुक्ति : घोर भय से त्राण देने वाली), २.३७.५६(माता के दक्षिणाग्नि होने का उल्लेख), शिव १.१६.९१(बिन्दु रूपा माता, नाद रूपी पिता), स्कन्द १.२.६.९७(मेधातिथि गौतम का चिरकारी पुत्र को स्व माता के वध का आदेश, चिरकारी द्वारा विलम्ब से माता की रक्षा, मेधातिथि द्वारा पश्चात्ताप का वृत्तान्त), ४.१.३६.७६(माता की भक्ति से भूलोक पर विजय होने का उल्लेख ), ५.१.८.१७(पृष्ठमाता तीर्थ के दर्शन से पाप से मुक्ति), ५.१.७०.४१(महाकालवन में आठ माताओं, ६ कृत्तिकाओं, चर्पटमाताओं और वट माताओं के वास का उल्लेख), ५.२.७६.२०(विनता द्वारा समयपूर्व अण्ड भेदन से अरुण नामक विकलाङ्ग पुत्र का जन्म, क्रुद्ध अरुण द्वारा माता को शाप, पश्चात् पश्चात्ताप पूर्वक माता के महत्त्व का कथन), ५.३.१५.२(संवर्त समय में सहस्रों रौद्ररूपा मातृ शक्तियों द्वारा त्रिलोकी का संहार), ५.३.१९८.८५(कायावरोहण तीर्थ में उमा की माता नाम से स्थिति का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.६०(माता के भूमि से भी गुरुतर होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), लक्ष्मीनारायण १.१०१.३१(८ प्रकार की माताओं का कथन), १.२८३.३६(माता के गुरुओं में अनन्यतम होने का उल्लेख), १.२८३.३७(क्षमा के माताओं में अनन्यतम होने का उल्लेख), २.४५.७८(झांझीवर दैत्य व मां अजा के पुत्र द्वारा माता व पत्नी का ताडन करने से मात्रागस्कर संज्ञा की प्राप्ति का वृत्तान्त), २.१००.७२(चक्रवाकी रूपी उर्वशी द्वारा पुत्री के संदर्भ में माता के महत्त्व का वर्णन ), द्र. श्रीमाता maataa/ mata
माता - पिता पद्म १.५०(माता - पिता की सेवा का महत्त्व, नरोत्तम ब्राह्मण व मूक चाण्डाल की कथा), २.६३(माता - पिता तीर्थ का माहात्म्य), भविष्य २.१.६.२१(पिता के प्रजापति की तथा माता के पृथिवी की मूर्ति होने का उल्लेख), महाभारत शान्ति १०८.७(पिता के गार्हपत्य अग्नि व माता के दक्षिणाग्नि होने का उल्लेख), १०८.२५(पिता के प्रसन्न होने से प्रजापति व माता के प्रसन्न होने से पृथिवी की पूजा का उल्लेख ) maataa – pita/ mata-pita
मातुल गर्ग १.१७.११(गोपियों द्वारा यशोदा से कृष्ण के ऊपर के दो दांतों का पहले निकलना मातुल हेतु दोष कारक बताना, मातुल न होने से विघ्न शान्ति हेतु दान प्रभृति की कर्त्तव्यता का कथन), मत्स्य ३३.८(ययाति द्वारा पुत्र यदु को मातुल सम्बन्ध से दुष्प्रजा उत्पन्न करने का शाप), लक्ष्मीनारायण २.२४६.३१ (मातृमातुल वर्ग के पृथिवी होने का उल्लेख ) maatula/ matula
मातुलुङ्ग नारद १.६७.६२(मातुलिङ्ग पुष्प को रवि को अर्पण करने का निषेध), वायु ३८.४२(२ शैलों के बीच स्थित मातुलुङ्ग स्थली की शोभा व उस में बृहस्पति के वास का कथन), कथासरित् ९.३.४०(राजा द्वारा कार्पटिक को रत्न पूरित मातुलुङ्ग/नींबू भेंट करने की कथा ) maatulunga/ matulunga
मातृ- मत्स्य १७९.१२(मातृनन्दा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक )
मातृका अग्नि १२५.७(शरीर के वायु चक्रों में स्थित मातृकाओं के नाम), १४५(वर्ण मातृका न्यास का वर्णन), २९३.३७(वर्ण मातृका न्यास की विधि), २९९.५०(बालपीडाकारक बालग्रहों की शान्ति हेतु सर्वमातृका मन्त्र), ३१३.८(ब्राह्मी प्रभृति ८ मातृकाओं की अर्चन विधि), गरुड १.२२३(नृसिंह स्वरूप द्वारा घोर मातृकाओं का संहरण), देवीभागवत ५.२८(शुम्भ - सेनानी रक्तबीज से युद्ध हेतु मातृकाओं का आगमन, देवता अनुसार मातृकाओं के नाम), ९.४६.५(मातृकाओं में विख्यात देवसेना की उत्पत्ति तथा चरित्र का कथन, अपर नाम स्कन्द - भार्या, प्रकृति का षष्ठांश), १२.६.१२८(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.८६(वैष्णव, शैव, कला व गाणपत्य वर्ण मातृकाओं के नाम व न्यास), १.८८(वर्ण मातृका), १.११८.५(मातृका नवमी व्रत), पद्म ३.२६.५५(मातृ तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्म २.४२(मातृ तीर्थ : शिव के स्वेद बिन्दुओं से मातृकाओं की उत्पत्ति, मातृकाओं द्वारा असुरों का भक्षण, मातृकाओं की प्रतिष्ठानपुर में प्रतिष्ठा), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.५९(प्रकृति देवी के अंश, कलांश तथा कलांशांश भेद से अनेक मातृका रूपों का वर्णन), २.३४(मातृकाओं में विख्यात देवसेना का आख्यान), ब्रह्माण्ड १.२.२५.६९(मातृणां पति : शिव के नामों में से एक), ३.४.७.७३(मधु द्वारा पूजन योग्य माताओं के नाम), ३.४.३७(वर्ण मातृका), ३.४.४४.९(८ मातृकाओं का देह में न्यास), भविष्य १.५७.७(मातृकाओं हेतु मांसान्न भक्त सूप बलि का उल्लेख), १.५७.१९(मातृकाओं हेतु अक्षत बलि का उल्लेख), १.१७७.१७(अरुण द्वारा आकाश माताओं, लोकमाताओं, भूतमाताओं, पितृमाताओं, मातृमाताओं प्रभृति सभी माताओं से शान्ति प्रदान करने की प्रार्थना), २.१.८.३७(३५ लिपिमातृकाओं? के देवताओं का निर्धारण), ३.४.३.५४(वेणु व कन्यावती की शीतला, पार्वती, कन्या, पुष्पवती, गोवर्धनी, सिंदूरा तथा काली नामक सात पुत्रियां ब्राह्मी प्रभृति सात मातृकाओं का रूप), ३.४.१४.७१(अम्बा का मातृभूता होने का उल्लेख), ४.२९(आनन्तर्य व्रत के अन्तर्गत भिन्न भिन्न मासों में भिन्न - भिन्न मातृकाओं का पूजन व फल), भागवत ६.६.२४(अदिति, दिति प्रभृति कश्यप - पत्नियों के लोकमाताएं होने का उल्लेख), ६.६.४२(अर्यमा - पत्नी, चर्षणियों की माता), ८.१०.३३(देवासुर सङ्ग्राम में मातृकाओं का उत्कल से युद्ध), मत्स्य १७९(अन्धक के रक्त पान हेतु शिव द्वारा मातृकाओं की सृष्टि, मातृकाओं के नाम, मातृकाओं द्वारा विध्वंस का विष्णु द्वारा निर्मित देवियों द्वारा अवरोध), मार्कण्डेय ८८.३८/८५.१२(वैष्णवी, ब्रह्माणी, कौमारी, वाराही, नारसिंही आदि मातृकाओं का आविर्भाव, असुरों के साथ युद्ध), ८९(मातृकाओं द्वारा निशुम्भ का वध), ८९.३५/८६.३५(मातृकाओं द्वारा विभिन्न प्रकार से असुरों का नाश), ९१.२(शुम्भ वध से प्रसन्न देवी द्वारा जगन्माता देवी की स्तुति), वराह २७.३०(अन्धक वध हेतु अष्ट देवों से अष्ट मातृकाओं की उत्पत्ति), वामन ५६(मातृकाओं की चण्डिका से उत्पत्ति, देवों की स्तुति), विष्णुधर्मोत्तर १.२२६(अन्धक के रक्त पानार्थ मातृकाओं की सृष्टि), १.२२७(मातृका शान्ति हेतु उपाय), २.३७.५१(मातृका के पृथिवी की मूर्ति होने का उल्लेख), ३.७३(मातृकाओं की मूर्ति का रूप), शिव ५.५०.१३(बालकों के अपराध को सहन करने वाली), ५.५०.२९(दुर्ग दैत्य विनाशार्थ देवी के शरीर से मातृकाओं की उत्पत्ति), ७.२.२२.२४(वर्ण मातृका न्यास का वर्णन), स्कन्द १.१.२८.२०(स्कन्द द्वारा मातृगण की स्वर्ग में स्थापना), १.२.५.२२(नारद द्वारा मातृका विषयक प्रश्न, सुतनु नामक ब्राह्मण बालक द्वारा मातृका के ५२ अक्षरों का अर्थ, भावार्थ, तत्त्वार्थ प्रतिपादन), १.३.२.१९(महिषासुर वधार्थ दुर्गा द्वारा मातृकाओं की उत्पत्ति), ३.२.९.१११(ब्राह्मणों की गोत्रों की रक्षक, मातृकाओं के नाम), ३.२.१६(मातृकाओं के नाम व वर्णन), ४.१.४२.१४(नेत्रों में मातृमण्डल होने का उल्लेख), ४.२.७२.१(मातृकाओं के नाम), ४.२.८३(विकटा आदि मातृकाओं द्वारा वीरेश्वर के पालन की कथा), ५.१.९(कपाल से मातृकाओं की उत्पत्ति, हालाहल दैत्य का भक्षण), ५.१.३४.८०(स्कन्द की रक्षार्थ वट मातृका, चर्पट मातृका, पौल मातृका), ५.१.३५(तैल मातृका), ५.१.३७(वट मातृका की उत्पत्ति), ५.१.३७(देवों द्वारा मातृकाओं की उत्पत्ति), ५.१.३८.३७(शिव द्वारा अवन्ती में चामुण्डा आदि माताओं की स्थापना), ५.१.६४.९(भैरव द्वारा मातृकाओं का वशीकरण), ५१६६, ५.१.७०(अष्ट मातृकाओं के नाम, योगिनी मातृका), ५.३.६६(मातृ तीर्थ का माहात्म्य), ६.८८(कालयवनों के वध के लिए अम्बा - वृद्धा के होम कुण्ड से मातृकाओं की उत्पत्ति, मातृकाओं की विचित्र मुखाकृतियां, अम्बा - वृद्धा द्वारा पादुकाओं से मातृकाओं का अनुशासन), ६.१८८(ब्रह्मा के यज्ञ में अष्टषष्टि मातृकाओं द्वारा स्थान पाना, सावित्री द्वारा मातृकाओं को शाप, औदुम्बरी द्वारा उत्शाप), ७.१.१६.२३(सुनन्दा प्रभृति मातृगणों द्वारा श्रीमुख नामक द्वार की रक्षा), ७.१.१६७(भूत मातृकाओं की शिव - पार्वती से उत्पत्ति, उत्सव), ७.१.१७०(मातृगण की पूजा का माहात्म्य), ७.१.१८२(मातृगण की पूजा का माहात्म्य), ७.१.१८५(देवमाता का माहात्म्य व पूजा विधि), ७.१.२२८(भैरवेश नामक मातृस्थान का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.३.२२(श्रीमाता का माहात्म्य : देवी द्वारा कलिङ्ग दानव से देवों की रक्षा), महाभारत शल्य ४६, योगवासिष्ठ ६.१.१८.१६(जया, विजया, अलम्बुषा आदि अष्ट मातृकाओं का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.२७.४१(सा†ध्वयों के माता नाम की निरुक्ति : मुक्त को मान प्रदान करने वाली), १.५११.१०५+ (ब्रह्मा के सोमयाग में उदुम्बरी को स्थान प्राप्त होने पर ६८ मातृकाओं को भी स्थान की प्राप्ति होना तथा सावित्री द्वारा मातृकाओं को शाप), १.५३९.५५(पार्वती के स्नान से उत्पन्न जल कर्दम से भूतमातृकाओं तथा शंकर के स्नान से भूतों की उत्पत्ति, शिव द्वारा भूतों और मातृकाओं के लिए आहार और वास का प्रबन्ध करना), २.१५३.८८(देवायतन के संदर्भ में मातृका होम का कथन), २.१५६.९६(देवायतन के संदर्भ में वर्ण मातृका न्यास), २.२०६.२९(स्थल, जल, जीव मातृकाओं के नाम), २.२७९.४५(मातृकाओं के प्रकार व मातृका स्थापन का महत्त्व), ३.६४.१०(नवमी तिथि को वंश रक्षाकर्त्री मातृकाओं की पूजा का निर्देश), कथासरित् ६.७.७१(वैश्य - कन्या मातृदत्ता द्वारा श्रुतसेन से विवाह, श्रुतसेन की मृत्यु पर आत्मदाह), ६.७.१५१(मातृदत्त नामक वैश्य के रोगी होने पर वैद्य द्वारा ओषधि प्रदान), ९.६.७६(नारायणी के साथ आए हुए मातृचक्र द्वारा भैरव का सत्कार ), द्र. भूतमातृका maatrikaa/ matrika |