PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
Puraanic contexts of words like Mukuta / hat, Mukunda, Mukta / free, Muktaa, Mukti / freedom, Mukha / mouth etc. are given here. मुकुट गणेश २.२९.३१(विरोचन द्वारा सूर्य भक्ति से मुकुट की प्राप्ति, परस्त्री द्वारा मूर्द्धा स्पर्श से मृत्यु), गर्ग ७.२३.१८(कुबेर द्वारा उग्रसेन/प्रद्युम्न के पास दूत हेममुकुट का प्रेषण), देवीभागवत ७.३८.२९(माकोट नामक स्थान में मुकुटेश्वरी देवी के वास का उल्लेख), पद्म ५.९९.१८(विनय के रत्न मुकुट होने का उल्लेख - विनयो रत्नमुकुटः सत्यधर्मौ च कुंडले। त्यागश्च कंकणो येषां किं तेषां जडमंडनैः), ६.१३३.१२ ( मुकुट क्षेत्र में कर्कोटक तीर्थ की स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १३.५०(मुकुट तीर्थ में देवी का सत्यवादिनी रूप से वास), १५०.१०२(कुजम्भ से युद्ध में धनद/कुबेर के मुकुट का पतन, कुजम्भ द्वारा मुकुट का ग्रहण), १५४.४३८(शिव विवाहोत्सव के अवसर पर सौरि द्वारा अनलोल्बण मुकुट तथा भुजगाभरणों से शिव का शृङ्गार), लिङ्ग १.५०.१४(मुकुट पर्वत पर पन्नगों के वास का उल्लेख), वायु ३६.२८(सितोद सर के पश्चिम में स्थित पर्वतों में से एक), ३९.६२(मुकुट पर्वत पर पन्नगों के वास का उल्लेख), ४२.५२(मुकुटा : ऋष्यवान् पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.४२.४(गन्धर्वों को मुकुट रहित दिखाने का निर्देश), स्कन्द ३.१.४४.१०(सुग्रीव द्वारा रावण का मुकुट गिराने का उल्लेख), ५.३.१९८.७०(माकोट तीर्थ में देवी की मुकुटेश्वरी नाम से स्थिति), लक्ष्मीनारायण २.१४०.३७(मुकुटोज्वल नामक प्रासाद के लक्षण- ८१ अण्डक इत्यादि), २.२२५.९२(ईशों को मुकुट दान का उल्लेख), २.२२५.९२(श्रीहरि द्वारा यज्ञ में सायंकाल दान में ईशों हेतु मुकुट व हार दान का उल्लेख), २.२९३.१०५ (बालकृष्ण व लक्ष्मी के विवाह में संकर्षण द्वारा मुकुट भेंट का उल्लेख ), द्र. प्रतापमुकुट mukuta
मुकुन्द गणेश
२.३९.१६(मुकुन्दपुर : भस्मासुर के नगर का नाम,
दुरासद असुर का निवासस्थान
-
मुकुन्दपुरमित्येव ख्यातं लोकेषु सर्वतः ॥ यस्मिन्भस्मासुरो राजा
पूर्वमासीद्बलान्वितः ।),
गरुड
१.५३.८(मुकुन्द
निधि का स्वरूप
-
भुक्तभोगो गायनेभ्यो दद्याद्वेश्यादिकासु च ॥),
३.२२.७८(मित्र में श्रीहरि की मुकुन्द नाम से स्थिति
-
मित्रे मुकुन्दः शालके चानिरूद्धो नारायणो द्विजवर्ये सदास्ति ॥),
३.२९.५५(शङ्खोदक उद्धरण काल में मुकुन्द के ध्यान का निर्देश
-
शङ्खोदकस्योद्धरणे चैव काले मुकुन्दरूपं संस्मरेत्सर्वदैव ॥),
नारद
१.६६.९३(मुकुन्द की शक्ति विनता का उल्लेख
-
मुकुन्दो विनतायुक्तो नन्दजश्च सुनन्दया),
ब्रह्मवैवर्त्त
३.३१.३३(मुकुन्द से उदर की रक्षा की प्रार्थना-
उदरं पातु मे नित्यं मुकुन्दाय नमः सदा।।),
४.१२.२१(मुकुन्द से वक्ष की रक्षा की प्रार्थना
-
वक्षः पातु मुकुन्दश्च जठरं पातु दैत्यहा ।),
४.१११.२८(मुकुन्द की निरुक्ति- मुकुं भक्तिरसप्रेमवचन देने वाला -
मुकुमध्ययमानं च निर्वाणं मोक्षवाचकम् ।। तद्ददाति च यो देवो मुकुंदस्तेन कीर्तितः
। मुकुं भक्तिरसप्रेमवचनं वेदसंमतम् ।।
मुकुन्दा गणेश १.२८.१(राजा रुक्माङ्गद द्वारा ऋषि वाचक्नवि व उनकी पत्नी मुकुन्दा के दर्शन आदि), १.२८.५(ऋषि वाचक्नवि की पत्नी मुकुन्दा की राजा रुक्माङ्गद पर कामासक्ति), १.३६.१(मुकुन्दा द्वारा रुक्माङ्गद रूप धारी इन्द्र के साथ रमण), १.३६.३६(मुकुन्दा व पुत्र गृत्समद द्वारा शाप - प्रतिशाप ) mukundaa
मुकुल भविष्य ३.२.१६.९(मुकुल दैत्य
का प्रह्लाद के शाप से व्याघ्र
होना,
चन्द्रशेखर राजा द्वारा व्याघ्र
का
वध ) mukula मुक्त अग्नि १९१.३( मौक्तिकाशी द्वारा माघ में महेश्वर की अर्चना का निर्देश), ब्रह्माण्ड ३.४.१.११३(१४वें भौत्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में पौलह मुक्त का उल्लेख), वायु १६.२०(मुक्त पुरुष के लक्षण), १०२.७६/२.४०.७६(संसार से विनिवर्तन होने पर मुक्त के लिङ्ग से मुक्त होने का उल्लेख), १०२.१०५/ २.४०.१०५ (गुण शरीर व प्राणादि से मुक्त होने पर अन्य शरीर धारण से मुक्ति का कथन), योगवासिष्ठ ४.४६(जीवन्मुक्त स्थित पुरुष के गुणों का वर्णन), ५.१८(मोक्षोपाय के रूप में जीवन्मुक्त दशा प्राप्त करने का निर्देश), ५.७५(मोक्षोपाय में मुक्त - अमुक्त विचार नामक सर्ग में देवों, दानवों, ऋषियों, मनुष्यों में जीवन्मुक्तों के उदाहरण), ५.७७(मोक्षोपाय में जीवन्मुक्त के स्वरूप का वर्णन), ६.१.११+ (जीवन्मुक्त निश्चय योगोपदेश नामक सर्ग में जीवन्मुक्त द्वारा स्वयं को ब्रह्म के साथ एकाकार करने का वर्णन), ६.१.१०४(जीवनमुक्त व्यवहार प्रतिपादन नामक सर्ग में चूडाला व शिखिध्वज के जीवन्मुक्त की भांति व्यवहार का प्रतिपादन), लक्ष्मीनारायण १.३०५.३९(सनकादि द्वारा मुक्त के लक्षणों का वर्णन), कथासरित् १०.३.२४(मुक्तलता : भिल्ल - कन्या, राजा को चतुर्वेद धारक शुक प्रदान ) mukta
मुक्ता अग्नि १९१.३( मौक्तिकाशी द्वारा माघ में महेश्वर की
अर्चना का निर्देश),
गणेश २.१२६.२२(चक्रपाणि द्वारा उत्तर दिशा में मुक्ता देवी
की स्थापना),
गरुड २.३०.५५/२.४०.५५(मृतक के स्तनों में
मौक्तिक देने का उल्लेख),
गर्ग ३.६.२६(कृष्ण
द्वारा कृषि द्वारा मुक्ताफलों को उगाने का कथन),
देवीभागवत ११.६.४२(मुक्तावली : सुधिषणा - पत्नी,
स्व पति की मृत्यु पर गुणनिधि के साथ विहार की कथा),
पद्म ६.६.२६(बल असुर के दन्तों से मुक्ता की उत्पत्ति का
उल्लेख),
विष्णु ४.२.२८(शाल्मलि द्वीप की ७ नदियों में से एक),
स्कन्द १.१.८.२२(चन्द्रमा
द्वारा मुक्तामय लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख),
५.३.१९५.११(देवतीर्थ में मुक्ता दान?),
योगवासिष्ठ
३.३९.४(दिन रूपी हस्ती के वध पर तारा रूपी गजमुक्ताओं का प्राकट्य),
लक्ष्मीनारायण २.७७.४६(मुक्ता दान से मुक्ता उत्पादन,
लवण उत्पादन आदि के पाप से मुक्ति का उल्लेख),
३.१६२.५०(मुक्ताफलात्मक मणियों की उत्पत्ति व प्रकार आदि का
वर्णन),
४.२६.५९(मुक्तानिका - पति कृष्ण की शरण से सम्पत् से मुक्ति
का उल्लेख),
कथासरित् ७.८.१९८(हिमालय शिखरस्थ एक नगर,
इन्दीवरसेन द्वारा पूर्व जन्म का स्मरण ),
द्र. गजमुक्ता,
भूगोल
muktaa
मुक्ताफल गरुड
१.६९(मुक्ताफल की महिमा),
ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३६(दन्तसौन्दर्य हेतु गोलोकनाथ को
मुक्ताफल/मोती का दान),
ब्रह्माण्ड
३.४.३३.५०(मुक्ताफलमय शाला की महिमा का कथन),
कथासरित्
९.५.२२०(शबरों का राजा),
१७.१.१५(मुक्ताफलकेतु
: विद्याधरों का राजा,
पद्मावती - पति),
१७.२.१(मुक्ताफलकेतु द्वारा
विद्युद्ध्वज के वध का वृत्तान्त),
१७.२.१३२(मुक्ताफलकेतु
के जन्म लेते ही आकाशवाणी द्वारा मुक्ताफलकेतु द्वारा विद्युद्ध्वज के वध का उल्लेख
) muktaafala/ muktafala
मुक्ति अग्नि १९१.३( मौक्तिकाशी द्वारा माघ में महेश्वर की अर्चना का निर्देश), नारद १.६६.९४(सात्वत विष्णु की शक्ति मुक्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.११(सत्य - पत्नी, प्रकृति की एक कला), ब्रह्माण्ड ३.४.५.२३(तप, यम आदि से शीघ्र| मुक्ति प्राप्ति का कथन), ३.४.८.२७(प्रवृत्ति मार्ग का अनुसरण करके मुक्ति पाने का उपाय), ३.४.३६.५१(अणिमा आदि सिद्धियों में से एक), भविष्य ३.४.७.२६ (तप से सालोक्य, भक्ति से सामीप्य, ध्यान से सारूप्य व ज्ञान से सायुज्य प्राप्ति का कथन), मत्स्य १७९.३०(मुक्तिका : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वराह १२१(जन्माभाव नामक अध्याय में मुक्ति के साधनों व कर्मों का कथन), वायु १०५.१६/२.४३.१४(४ तीर्थों में चतुर्विध मुक्ति), १०८.३७/२.४६.४०(मुक्तिवामन : गया में रवि की २? मूर्तियों में से एक), शिव १.१०.५(सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह नामक शिव के पञ्चकृत्य में अनुग्रह मुक्ति का हेतु), ४.४१(मुक्ति का निरूपण), स्कन्द ४.२.९८.८२(मुक्ति मण्डप का माहात्म्य), ५.२.२५(मुक्तीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, मुक्ति विप्र के समक्ष व्याध व व्याघ्र| की मुक्ति), ७.४.१६.१३(मुक्तिद्वार तीर्थ का माहात्म्य, गोमती के उद्भव की कथा), योगवासिष्ठ ३.९(जीवन्मुक्त के लक्षणों का कथन), लक्ष्मीनारायण १.७६.४(मुक्ति के विविध साधनों ज्ञान, सेवा, परोपकार आदि आदि का कथन), १.३०७.१७(धर्म व भक्ति की मानसी कन्याओं प्रेयसी व श्रेयसी में से श्रेयसी द्वारा मुक्ति नाम की प्राप्ति का कारण), १.३६७.१६(जीवन्मुक्ति व ब्रह्ममुक्ति नामक २ मुक्तियों का कथन), १.५४७.३९(सालोक्य आदि ४ प्रकार की मुक्ति के अधिकारी जनों का कथन), २.२५४.५२(आत्मविवेक, हरि उपासना, योगाभ्यास, धर्ममात्रआश्रय, गुरु आश्रय मात्रसे प्राप्त होने वाली मुक्तियों के विषय में प्रश्न और लोमश का उत्तर), ३.१८.१८(सालोक्य, सार्ष्टि, सारूप्य आदि मुक्तियों की क्रमश: श्रेष्ठता का कथन), ३.३०.४८(मुक्ति के तीन साधनों सन्त, हरि व शील का उल्लेख), ३.३७.११२(५२वें वत्सर में श्रीहरि व लक्ष्मी का नाम संकीर्तन आदि में रत देवों व ऋषियों के मध्य मोक्ष नारायण व मुक्तिश्री के रूप में अवतार), ३.८१.९३(शतानन्द व विनोदिनी विप्र दम्पत्ति द्वारा मुक्तिदायक पुत्र मुक्त्यायन को उत्पन्न करने का कथन), ३.१७४+ (मुक्ति धर्म का वर्णन), ३.१७६.११(मुक्तिस्रोतायन गुरु द्वारा सिद्धिवेशायन शिष्य की जिज्ञासाओं का उत्तर), ४.१०१.८८(कृष्ण की पत्नियों में से एक, सुनिर्वाण व द्युशाश्वती युगल की माता), कथासरित् ९.१.१२०(मुक्तिपुर : एक द्वीप, राजा रूपधर व हेमलता - कन्या रूपलता का वास ) mukti
मुख गरुड १.२०५.१४८(मुख में आहवनीय अग्नि के वास का उल्लेख), नारद १.५०.३५(मुखा : देवों की सप्त मूर्च्छनाओं में से एक), ब्रह्म २.९४.१२(चिच्चिक पक्षी के द्विमुख होने का कारण : पूर्व जन्म में द्विज योनि में अनृत वादन आदि), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३.२५(चतुष्पदों में पञ्चास्य की उत्कृष्टता का उल्लेख), ३.४.३०(मुख सौन्दर्य हेतु पद्म दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड १.१.५.१६(यज्ञवराह के जुहूमुख होने का उल्लेख), भागवत ३.१२.२४(ब्रह्मा के मुख से अङ्गिरा की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.२९.११(मुख से सम्बन्धित प्रतीकों का कथन), मत्स्य १७९.१२(मुखमण्डिका : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १७९.२१(महामुखी : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १७९.२१(मुखेबिला : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु १००.१९/२.३८.१९(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में मुख संज्ञक देवों के गण के २० देवों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर २.७९.१४(अश्व, अज के मुख शुद्ध होने तथा गौ के मुख के अशुद्ध होने का कथन), शिव १.१०.९(सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह नामक पञ्चकृत्य को धारण करने हेतु शिव की पञ्चमुखता, चार दिशाओं की चतुर्मुखता तथा पञ्चम मुख ब्रह्मा विष्णु से तप द्वारा प्राप्त), स्कन्द ४.२.५७.८२(त्रिमुख व पञ्चमुख विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.३९.२८(कपिला गौ के मुख में अग्निदेव की स्थिति), हरिवंश ३.७१.५०(वामन के विराट स्वरूप ग्रहण करने पर मुख के स्थान में अग्नि देवता की स्थिति), महाभारत सभा ३८.२७(वेदों का मुख अग्निहोत्र, छन्दों का गायत्री आदि होने का कथन), भीष्म १४.१०(भीष्म के मुख, दांत व जिह्वा की चाप, शर व असि से उपमा), योगवासिष्ठ ६.२.८०.२१(रुद्र के ५ मुख ५ ज्ञानेन्द्रियों के प्रतीक होने का उल्लेख), वा.रामायण ५.१७.१४(हनुमान द्वारा अशोकवाटिका में अजामुखी, हस्तिमुखी आदि राक्षसियों को देखना), कथासरित् १२.६.७५(मुखरक : द्यूत व्यसनी, श्रीदर्शन - मित्र), १२.६.२०२(पद्मगर्भ व शशिकला - पुत्र मुखरक द्वारा स्वभगिनी पद्मिष्ठा से अनायास मिलन व मित्र श्रीदर्शन की सहायता से पद्मिष्ठा को चोर वसुभूति से मुक्त कराने का वृत्तान्त ), द्र. कालमुख, कीर्तिमुख, कोकामुख, गौरमुख, चन्द्रमुखी, ज्वालामुखी, दधिमुख, दुर्मुख, नग्नमुखी, बगलामुखी, व्याघ्र|मुख, शिलीमुख, सुमुख, सुवर्णमुखरी, सूचीमुख mukha |