PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Muuka, Muurti / moorti / idol, Muula / moola etc. are given here. मूक गरुड १.२१७.३३(विद्यापहरण से मूक योनि प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.५.३५(सुन्द व ताडका - पुत्र, सव्यसाची द्वारा वध), मत्स्य ११४.३६(मध्य देश के जनपदों में से एक), वायु ६७.७३/२.६.७२(सुन्द व ताडका - पुत्र, सव्यसाची द्वारा वध), शिव ३.३९.१०(अर्जुन के वधार्थ दुर्योधन द्वारा प्रेषित शूकर रूपी दैत्य का नाम), स्कन्द ७.१.२१.२७(ह्राद - पुत्र, हिरण्यकशिपु- पौत्र, सव्यसाची द्वारा वध), लक्ष्मीनारायण २.१६२.२८(शतोढु द्वारा तप से मूक पुत्र वोढु की प्राप्ति, वोढु द्वारा तप से वाणी की प्राप्ति का वृत्तान्त), २.२६४.२५(हरिणघाती शूद्र का शृङ्गधर के मूक पुत्र के रूप में जन्म, तप से मूकत्व समाप्ति का वृत्तान्त, आयुर्वेद की शार्ङ्गधर संहिता का निर्माण), ३.६२.३१(सरस्वती द्वारा स्व भगिनी शारदा के मूकत्व के निरसन का कथन ) mooka/muuka/ muka
मूढ शिव ४.७.७(मूढ नामक दैत्य द्वारा ऋषि - कन्या को पीडा, शिव द्वारा वध ) moodha/muudha/ mudha
मूत्र गरुड २.२२.६१(मूत्र में क्षीरोद की स्थिति का उल्लेख), २.३०.५०/ २.४०.५०(मृतक के मूत्र में गोमूत्र देने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१४८ (मूत्राकीर्ण : नरकों में से एक), ३.४.२.१७०(मृषावादियों आदि के मूत्राकीर्ण नरक को प्राप्त होने का उल्लेख), वायु १०१.१६८/२.३९.१६८(मृषावादियों आदि के मूत्राकीर्ण नरक को प्राप्त होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३७०.५२(नरक में मूत्र कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), ३.१३२.३७(रत्न धेनु के संदर्भ में घृत धेनु के मूत्र स्वरूप होने का उल्लेख), महाभारत विराट १०.१४(कतिपय ऋषभों के मूत्र के सूंघने से वन्ध्या के प्रसूतिवति होने का कथन ) mootra/muutra/ mutra
मूर्ख भागवत ११.१९.४२(मूर्ख की परिभाषा : शरीरादि में स्वत्व रखने वाले), कथासरित् १०.५.२(गोमुख मन्त्री द्वारा नरवाहनदत्त के विनोद हेतु मूर्खों की कथाओं का कथन), १०.६.१८७(वही), १०.७.१६३(वही, मूर्ख शिष्यों की कथा), १०.९.१५८(वही, मूर्ख मार्जार की कथा ) muurkha/moorkha/ murkha
मूर्ति अग्नि ४६(शालग्राम शिला के लक्षण के अनुसार मूर्ति की देव संज्ञा का वर्णन), १६४(नव ग्रहों की मूर्ति निर्माण में रंगों का कथन), गणेश १.५०.९(गणेश की १, २, ३, ४, ५, ६ आदि मूर्तियों की पूजा का फल), नारद २.५४(भगवद् निर्देश से नरपति द्वारा सिन्धु कूल पर कृष्ण, राम, सुभद्रा की मूर्तियों की स्थापना), पद्म ५.१०३(ध्यान हेतु विष्णु के स्वरूप का वर्णन), ६.८२.१०(विष्णु की विविध वस्तुओं से निर्मित मूर्ति की पूजा के फल का वर्णन), ६.१२०.५२(शालग्राम शिला में अङ्कित वासुदेवादि की मूर्तियों के लक्षणों का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.२१(धर्म - पत्नी, प्रकृति की कला), ४.८६.१३१(धर्म - पत्नी, पति जीवन हेतु भगवान् से प्रार्थना), भविष्य १.७४.१०(द्वादश सूर्यों की मूर्तियों की १२ स्थानों में स्थिति), १.१५४.१५(सूर्य द्वारा अपनी सात्त्विकी, राजसी, तामसी रूप में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा इनसे परे अवाच्या रूप में चतुर्मूर्ति रूपता का कथन), ४.१५०.१०(धर्म से अष्टमूर्ति अधिष्ठान? की रक्षा की प्रार्थना), भागवत २.७.६(धर्म - पत्नी, दक्ष - कन्या, धर्म व मूर्ति से भगवान् का नर - नारायण रूप अवतार), ४.१.४९(दक्ष व प्रसूति की १६ कन्याओं में से एक, धर्म की १३ पत्नियों में से एक), ८.१३.२२(१०वें मनु के काल में सप्तर्षियों में से एक), ११.१६.३२(विभूति वर्णन के अन्तर्गत श्रीहरि के नव मूर्तियों में आदि मूर्ति होने का उल्लेख), १२.११.२१(वासुदेव, संकर्षण आदि चतुर्व्यूह की मूर्तिव्यूह संज्ञा), मत्स्य ९.९(स्वारोचिष मन्वन्तर में वसिष्ठ के प्रजापति संज्ञक ७ पुत्रों में से एक), २६५.१(मूर्त्तिप/पुजारी के लक्षणों का कथन), २६५.४२(पृथिवी, अग्नि आदि ८ तत्त्वों के ८ अधिपतियों शर्व, पशुप आदि की मूर्त्तिप संज्ञा), २६६.५४(देव स्थापना के पश्चात् यजमान द्वारा मूर्त्तिप आचार्य की पूजा का निर्देश), वराह ४.२(नारायण की मत्स्य, कूर्म, वराह आदि १० मूर्तियों का उल्लेख), ४.७(नारायण देव की सात्विक, राजस, तामस, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश नामक ८ मूर्तियों का उल्लेख), ९(भगवद् मूर्ति), ३०.५( ब्रह्मा के मुख से नि:सृत वायु का मूर्तिमान् होकर धनद बनना), २६.१६(सप्तमी तिथि में सूर्य द्वारा मूर्ति अङ्गीकरण का उल्लेख), विष्णु १.२२.६८(विष्णु की मूर्ति), विष्णुधर्मोत्तर ३.४४(त्रिमूर्ति का निर्माण), ३.४६(ब्रह्मा की मूर्ति), ३.४७(विष्णु की मूर्ति), ३.४८(शिव की मूर्ति), ३.४९(नासत्य की मूर्ति), ३.५०(शक्र की मूर्ति), ३.५१(यम की मूर्ति), ३.५२(वरुण की मूर्ति), ३.५४(गरुड की मूर्ति), ३.५५(ईशान की मूर्ति), ३.५६(अग्नि की मूर्ति), ३.५७(विरूपाक्ष की मूर्ति), ३.५८(वायु की मूर्ति), ३.५९(भैरव की मूर्ति), ३.६०(विष्णु की मूर्ति), ३.६१(भूमि की मूर्ति), ३.६२(गगन की मूर्ति), ३.६३(ब्रह्मा की मूर्ति), ३.६४(सरस्वती की मूर्ति), ३.६५(अनन्त की मूर्ति), ३.६६(तुम्बुरु की मूर्ति), ३.६७(आदित्य मूर्ति), ३.६८(चन्द्रमा की मूर्ति), ३.६९(ग्रहों की मूर्तियां), ३.७०(मनु की मूर्ति), ३.७१(कुमार, भद्रकाली, ब्रह्मा, गणेश व विश्वकर्मा की मूर्तियां), ३.७२(वसुओं की मूर्तियां), ३.७३(विभिन्न देवताओं की मूर्तियां), ३.७४(लिङ्ग की मूर्ति), ३.७५(व्योम की मूर्ति), ३.७६(नर - नारायण की मूर्ति), ३.७७(धर्म की मूर्ति), ३.७८(नृसिंह की मूर्ति), ३.७९(वराह की मूर्ति), ३.८०(हयग्रीव की मूर्ति), ३.८१(पद्मनाभ की मूर्ति), ३.८२(लक्ष्मी की मूर्ति), ३.८३(विश्वरूप की मूर्ति), ३.८४(ऐडूक की मूर्ति), ३.८५(वासुदेव की मूर्ति), ३.८५.६७(पाण्डवों की मूर्तियां), ३.१३७+ (चतुर्मूर्ति, व्रत), ३.१४७(देवमूर्ति, व्रत), शिव ३.२(शिव के शर्व आदि नामों की ८ मूर्तियां), स्कन्द २.२.१८.३३(पुरुषोत्तम क्षेत्र में वाजिमेध के अन्त में प्रकट हुए दिव्य वृक्ष से विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने का प्रश्न : चतुर्व्यूह रूपी ४ मूर्तियों का कल्पन), २.२.२८, २.५.४, ४.२.६१.२१४ (केशव, संकर्षण, अनिरुद्ध आदि मूर्तियों के २४ भेद), लक्ष्मीनारायण १.३०३(मूर्ति द्वारा तप से धर्मदेव को प्रसन्न करना, पुरुषोत्तम मास की एकादशी व्रत से जन्मान्तर में दक्ष - कन्या बनकर धर्म को पति रूप में प्राप्त करके नर, नारायण, कृष्ण व हरि की माता बनना), १.३८५.४६(मूर्ति का कार्य), १.४६६.३५(वेदशिरा मुनि व शुचि अप्सरा की कन्या धूतपापा का जन्मान्तर में दक्ष - कन्या, धर्म - पत्नी व हरि - माता मूर्ति बनने का कथन), २.११५ - १६०(देवायतन में मूर्ति प्रतिष्ठा विधि का विस्तृत वर्णन), २.२०३.४(नारायण, लक्ष्मी, हरि आदि की मूर्तियों के अङ्गुल मान), ३.१८९.४(भगवान् की चिन्तामणि मूर्ति का ध्यान करने के लाभों का वर्णन), ४.१०१.९१(कृष्ण - पत्नी मूर्ति के पुत्र अनिरुद्ध व सुता सुदर्शनेश्वरी का उल्लेख ), द्र. तपोमूर्ति, धर्ममूर्ति moorti/muurti/ murti
मूर्द्धा गरुड २.३०.५५/२.४०.५५(मृतक की मूर्द्धा में कुङ्कुम लेप देने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५७(मूर्द्धा सौन्दर्य हेतु छत्र दान का निर्देश), मत्स्य १९५.१३(भृगु व दिव्या के १२ याज्ञिक देव पुत्रों में से एक), वायु २८.६(मूर्द्धन्या : मार्कण्डेय - पत्नी, वेदशिरा - माता), हरिवंश ३.१७.४७(अव्यक्त की मूर्द्धा से अथर्ववेद की उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२१५.६२(देह में मूर्द्धा की ब्रह्माण्ड में सत्य लोक से समता ), द्र. द्विमूर्द्धा moordhaa/muurdhaa/ murdha
मूल पद्म ६.१७४.३०( मौलिस्तान/मुलतान स्थान पर हारीत व लीलावती द्वारा तप से नृसिंह की पुत्र रूप में प्राप्ति का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.२१.७६(अजवीथी के ३ उदय नक्षत्रों में से एक), १.२.३५.६६(४ मूल संहिताकारों के नाम), २.३.१८.१०(आरोग्य प्राप्ति हेतु मूल नक्षत्र में श्राद्ध का निर्देश), ३.४.८.२८(मूलप्रकृति द्वारा ५x५ तत्त्वों की तृप्ति हेतु पुरुष का मन्थन करने का कथन), भविष्य ४.७.९(मूलजालिक : ब्राह्मण, शकट व्रत से रम्भा की प्राप्ति), भागवत ५.२३.६(शिशुमार की देह में धनिष्ठा व मूल नक्षत्रों की कर्णों में स्थिति का उल्लेख), मत्स्य २२.३३(मूलतापी : श्राद्ध हेतु प्रशस्त नदियों में से एक), १९६.९(मूलप : आङ्गिरस कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), १९६.१६(मूलहर : आङ्गिरस कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ५०.१३०(अजवीथी के ३ उदय नक्षत्रों में से एक), ६१.३७(मूलचारी : सामगाचार्य लोकाक्षि के ४ शिष्यों में से एक), ६६.५१/२.५.५१(अजवीथी के ३ नक्षत्रों में से एक), ८२.१०/२.२०.१०(आरोग्य प्राप्ति हेतु मूल नक्षत्र में श्राद्ध का निर्देश), विष्णुधर्मोत्तर २.८४(बहुफला कृषि हेतु मूलस्नान का वर्णन), ३.१२१.१२(मूल स्थान में दिवाकर की पूजा का निर्देश), स्कन्द ४.२.८३.२३(मित्रजित् व मलयगन्धिनी द्वारा मूल ऋक्ष में उत्पन्न स्व पुत्र के परित्याग का वृत्तान्त), ५.३.१९४.२४(मूलश्री : ब्राह्मी का नाम, मूलश्रीपति से विवाह), ५.३.१९७(मूल स्थान तीर्थ का माहात्म्य), ६.७६.३(हाटकेश्वर क्षेत्र में सूर्य के अस्त होने के स्थान मूल स्थान का माहात्म्य : द्विज की कुष्ठ से मुक्ति की कथा), ७.१.२७८(मूल स्थान का माहात्म्य : निम्ब मूल में सूर्य की स्थिति, वैशाख विप्र का सप्तर्षियों के प्रभाव से वाल्मीकि बनना, देविका पूजा से सिद्धि प्राप्ति), ७.१.३०८(मूलचण्डीश लिङ्ग की उत्पत्ति व माहात्म्य), ७.४.१७.३७(भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत ईशान दिशा के रक्षकों में से एक), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.११३(मूलकर्दम : कृष्ण व पद्मिनी के पुत्र मूलकर्दम व पुत्री सलिला का उल्लेख ), द्र. देवमूल, सुमूल moola/muula/ mula
मूलक पद्म ४.२१.२५(मूलक से बल हानि होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.६.९(मूलकोदर : दनु व कश्यप के प्रधान दानव पुत्रों में से एक), २.३.६३.१७९ (अश्मक - पुत्र मूलक द्वारा नारीकवच नाम की प्राप्ति), भागवत ९.९.४०(अश्मक - पुत्र, नारीकवच उपनाम, नाम की निरुक्ति), वायु ७०.८७/२.९.८७(मूलिक : पराशर कुल के ८ पक्षों में से एक), ८८.१७७/ २.२६.१७७(अश्मक - पुत्र, शतरथ - पिता, परशुराम के भय से स्त्रियों की शरण लेने का कथन), विष्णु ४.४.७३(अश्म - पुत्र, दशरथ - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) moolaka/muulaka/ mulaka
मूलदेव भविष्य ३.२.१३.५(मूलदेव द्विज द्वारा सुदेव द्विज को चामुण्डा बीज युक्त महामन्त्र प्रदान, चन्द्रावली की कथा का वर्णन), कथासरित् १८.५.१२९(उज्जयिनी निवासी मूलदेव द्वारा विक्रमादित्य को स्त्रियों की चतुरता विषयक कथा का कथन ) mooladeva/muuladeva
मूलवर्मा भविष्य ३.३.३१.७१(गुर्जराधिपति, प्रभावती - पिता), ३.३.३२.१६३ (गुर्जर देश के नृप मूलवर्मा की पृथ्वीराज - सेनानी पूर्णामल से युद्ध में मृत्यु )
मूलशर्मा भविष्य ३.३.१५.१०(देवी द्वारा कुण्ड भरण की परीक्षा, रक्त बीज होने का वरदान), |