PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Menaa, Meru, Mesha, Maitreya etc. are given here. Comments on Meru by Shri Arun Kumar Upadhyay मेरु अग्नि १०७(नाभि - पत्नी, ऋषभ - माता), १०८.३(मेरु पर्वत के विस्तार का कथन ; मेरु के परित: पर्वतों का विन्यास), २१०(दस मेरुओं के निर्माण व दान का वर्णन), २१२(१२ प्रकार के मेरुओं के दान का वर्णन, मेरु के परित: पर्वतों का विन्यास), कूर्म १.४.४०(हिरण्यगर्भ अण्ड के उल्ब/वेष्टन का रूप), १.१३(धारिणी - पति, आयति व नियति कन्याओं का पिता), १.४५(मेरु पर्वत की जम्बू द्वीप में स्थिति, मेरु के परित: स्थित पर्वतों व वर्षों का विन्यास), देवीभागवत ८.६(मेरु - मन्दर पर्वत : सुमेरु पर्वत का एक स्तम्भ, जम्बू वृक्ष का स्थान), पद्म १.१५.३(मेरु के शिखर पर स्थित वैराज नामक भवन में विराजित ब्रह्मा का जगत्कर्त्ता तथा यज्ञ विषयक विचार), १.२१.११०(मेरु निर्माण व दान विधि), २.२६.६(दिति द्वारा कश्यप से इन्द्र वधार्थ पुत्र की प्रार्थना, दिति का कश्यप के साथ तप हेतु मेरु तपोवन में गमन), २.३१.१९(अत्रि के उपदेश से अङ्ग का इन्द्र सदृश पुत्र प्राप्ति हेतु तप करणार्थ मेरु पर्वत पर गमन), ३.३+ (मेरु पर्वत का वर्णन), ब्रह्म १.१६.४५(माल्यवान् व गन्धमादन के मध्य कर्णिकाकार स्थित पर्वत), ब्रह्माण्ड १.१.३.२८(हिरण्मय मेरु के उत्थान का कथन : मेरु का हिरण्यगर्भ से तादात्म्य),१.२.७.१४२(सुमेरु पर्वत का पृथिवी दोहन में वत्स बनना), १.२.१३.३६(धारिणी - पति, मन्दर व ३ कन्याओं का पिता), १.२.१५.१६(मेरु पर्वत की ४ दिशाओं में ब्राह्मण आदि ४ वर्णों का समावेश, महामेरु के परित: इलावृत की स्थिति आदि का कथन), १.२.१७.१४(मेरु के परित: पर्वतों के नाम), १.२.२१.१४(मेरु के मध्य से पृथिवी के मण्डल के विस्तार की गणना), भागवत ४.१.४४(मेरु ऋषि द्वारा अपनी आयति और नियति कन्याओं का क्रमश: धाता व विधाता से विवाह), मत्स्य ८३(मेरु पर्वत दान व मेरु के १० भेदों का वर्णन), ११३.१२(मेरु पर्वत : चारों वर्णों का समन्वय), मार्कण्डेय ५५(मेरु की उत्तर दिशा के नग), लिङ्ग १.४८(भारतवर्ष के मध्य में स्थित मेरु के स्वरूप का वर्णन), १.४९.२५(मेरु की चार दिशाओं में ४ पाद रूपी पर्वतों के नाम), वराह ७५(सुमेरु का वर्णन), १४१.३२(मेरु तीर्थ, मेरु धारा में स्नान का माहात्म्य), वायु २३.२२१/१.२३.२१० (२८वें द्वापर में शिव अवतार द्वारा मेरु गुहा में प्रविष्ट होकर नकुली नाम से प्रख्यात होने का कथन), ३४.१५(ब्राह्मण आदि चार वर्णों का संघात), ५०.८७(मेरु के परित: पुरों का विन्यास), ६८.१५/२.७.१५(दनु व कश्यप के मनुष्य धर्मा दानव पुत्रों में से एक), विष्णु १.१०.३(मेरु की २ कन्याओं आयति व नियति का धाता व विधाता से विवाह, भृगु वंश), २.१.२०(आग्नीध्र - पुत्र इलावृत द्वारा मध्यम वर्ष मेरु की प्राप्ति, मेरु के परित: स्थित वर्षों की अन्य पुत्रों द्वारा प्राप्ति), २.२.३९(मेरु के परित: मर्यादा पर्वतों का विन्यास), २.८.१९(मेरु के ऊपर अमर गिरि पर ब्रह्मा की सभा की स्थिति का कथन), ५.१.१२(भार से पीडित होने पर भूमि के मेरु पर स्थित देवों के समाज में जाने का उल्लेख), शिव ७.१.१७.५१(धरणी - पति, मन्दर - पिता), ७.२.४०.३७ (दक्षिण मेरु का महत्त्व : सनत्कुमार के तप का स्थान आदि), स्कन्द २.३.८ (बदरी आश्रम में तीर्थ), ५.३.२८.१६(त्रिपुर वध हेतु तैयार शिव रथ के युगमध्य में मेरु की स्थिति), ७.१.१७.१००(मेरु शृङ्ग पूजा का मन्त्र), ७.१.२४.५७(प्रासाद का नाम), हरिवंश ३.१७.८(मेरु शिखर के विस्तार का वर्णन), योगवासिष्ठ १.२५.२३(नियति के कर्ण में कुण्डल का रूप), ३.८१.१०५(बिसतन्तु की महामेरु से उपमा), ६.१.१४(मेरु शिखर का वर्णन), ६.१.८१.४५(कुण्डलिनी शक्ति का पूरण करने पर मेरु के स्थैर्य की प्राप्ति का कथन), वा.रामायण ७.५.१०(सुकेश - पुत्रों माल्यवान्, माली तथा सुमाली की मेरु पर्वत पर तपस्या, ब्रह्मा से वर प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.२०९.१(मेरु तीर्थ का माहात्म्य : मेरु के शृङ्गों का सूक्ष्म रूप में श्रीहरि के वास स्थान विशाला पुरी में स्थापित होना आदि), १.२०९.२०(मेरु पर दण्डपुष्करिणी की उत्पत्ति व माहात्म्य), १.३८२.१८६(मेरु-भामिनी धरणी का उल्लेख), २.१४०.७(मेरु संज्ञक प्रासाद के लक्षण), २.१४१.२(ज्येष्ठ, मध्यम व कनिष्ठ मेरु नामक प्रासादों के लक्षणों का वर्णन), २.१४१.५०(लक्ष्मीकोटर मेरु, कैलासमेरु, विमानमेरु, गन्धमादन मेरु, तिलकमेरु, सुन्दर मेरु आदि प्रासादों के लक्षण), ३.३.३७(१४ स्तरों वाले मेरु के अतिभार से रसातल में धंसने पर मेरु के उद्धार हेतु मेरुनारायण अवतार का कथन), ४.२.११(राजा बदर के मेरु नामक विमान का उल्लेख), कथासरित् १७.५.९(देवसभ नगर के चक्रवर्ती सम्राट् मेरुध्वज द्वारा इन्द्र के परामर्श पर शिवाराधन के फलस्वरूप मुक्ताफलध्वज व मलयध्वज नामक पुत्रों की प्राप्ति ), द्र. वंश भृगु, सुमेरु meru Comments on Meru by Shri Arun Kumar Upadhyay
मेरुदेवी ब्रह्माण्ड १.२.१४.५९(नाभि व मेरुदेवी से ऋषभ पुत्र के जन्म का उल्लेख), भागवत ५.३.१(पुत्र प्राप्ति हेतु नाभि द्वारा यज्ञपुरुष के यजन का कथन), ५.३.२०(नाभि - पत्नी मेरुदेवी के भगवदवतार ऋषभदेव की माता बनने का कथन ) merudevee/ merudevi
मेरुसावर्णि ब्रह्माण्ड ३.४.१.५५(दक्ष - पुत्र मेरुसावर्णि के काल के मेरुसावर्णि - पुत्रों, देवों व सप्तर्षियों आदि के नाम), मत्स्य ९.३६(ब्रह्म - पुत्र, अन्तिम मनु), वायु १००.५९/२.३८.५९(दक्ष - पुत्र मेरुसावर्णि के मन्वन्तर काल के मेरु - पुत्रों, देवों व सप्तर्षियों आदि के नाम), वा.रामायण ४.५१.१६(हेमा के भवन की रक्षक मेरुसावर्णि - पुत्री स्वयंप्रभा का प्रसंग ) merusaavarni/ merusavarni
मेष नारद १.६६.११५(मेषेश की शक्ति तर्जनी का उल्लेख), पद्म २.३७.३६(सौत्रामणी में मेष हनन का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.१०.४८(शिव द्वारा स्कन्द को मेष भेंट का उल्लेख), ३.४.४४.५३(लिपि न्यास के प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता), भविष्य १.१३८.४०(पावक की मेष ध्वज का उल्लेख), ३.४.११.५८(वसुशर्मा द्विज द्वारा मेष प्रदान से रुद्र के प्रसन्न होने का कथन), ४.११८.९(इल्वल व वातापि की कथा में वातापि के मेष बनने आदि का वृत्तान्त), ४.१६३(मेषी दान विधि), मत्स्य ६.३३(ताम्रा - पुत्री सुग्रीवी से अज, अश्व, मेष, उष्ट} व खरों की उत्पत्ति का उल्लेख), १४६.६४(तपोरत वज्राङ्ग - पत्नी वराङ्गी को भयभीत करने के लिए इन्द्र द्वारा धारित रूपों में से एक), १९९.२(मेषकीरिटकायन : मरीचि कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), १९९.७(मेषप : मरीचि कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), वायु ५०.१९५(मेषान्त व तुलान्त में भास्करोदय से अह व रात्रि मान १५ मुहूर्त्त होने का उल्लेख), १०५.४६/२.४३.४४(गया में पिण्ड दान के लिए सूर्य की प्रशस्त राशियों में से एक), स्कन्द १.२.१६.१९(तारक - सेनानी मेष दैत्य के राक्षस ध्वज का उल्लेख), १.२.१६.२४(मेष के रथ के द्वीपि वाहन का उल्लेख), ४.२.९८.३८(मेष कुक्कुट मण्डप : कैवल्य मण्डप का द्वापर में नाम), ७.१.२८५.१०(वातापि दैत्य द्वारा मेष रूप धारण कर द्विजों को त्रास, अगस्त्य द्वारा मेष रूप वातापि का भक्षण), महाभारत अनुशासन ८४.४७(मेष के वरुण का अंश होने का उल्लेख?), योगवासिष्ठ ५.५३.२८(अहंकार का रूप), वा.रामायण १.४९.६(इन्द्र के मेष के वृषण से युक्त होने की कथा), लक्ष्मीनारायण २.५.३३(मेषन : बालकृष्ण को मारने का प्रयास करने वाले दैत्यों में से एक, षष्ठी द्वारा वध), २.१९.४२(मेषी राशि के स्वरूप/लक्षणों का कथन), २.१२१.९६(राशियों के संदर्भ में मेषायन महर्षि को ब्रह्मा द्वारा अ ल इ वर्ण देने का उल्लेख), ३.१०२.६६(मेष की वरुण से उत्पत्ति?), ३.१३१.८(आग्नेयी शक्ति के मेष वाहन का उल्लेख ) mesha
मेहन लक्ष्मीनारायण २.५.३२(बालकृष्ण को मारने का प्रयास करने वाले दैत्यों में से एक, षष्ठी देवी द्वारा वध )
मैत्र ब्रह्माण्ड २.३.३.३९(दिन के १५ मुहूर्त्तों में से एक), मत्स्य ५०.१३(मैत्रायण : दिवोदास के ३ पुत्रों में से एक), १९६.४९(मैत्रवर : आङ्गिरस कुल के पञ्चार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६६.४०/२.५.४०(दिन के १५ मुहूर्त्तों में से एक), स्कन्द २.७.७(श्रुतदेव - पिता, अन्न दान के अभाव में पिशाच योनि की प्राप्ति ) maitra
मैत्रावरुण ब्रह्माण्ड १.२.३२.११६(७ ब्रह्मवादी वशिष्ठों में से एक), वायु ५९.१०६(१० मन्त्रब्राह्मणकार ऋषियों में से एक ), द्र. मित्रावरुण maitraavaruna/ maitravaruna
मैत्री भागवत ४.१.४९(दक्ष - कन्या, धर्म - पत्नी, प्रसाद - माता), भागवत ११.२.४६(बौद्ध साहित्य के मैत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा का भागवत में प्रतिरूप ) maitree/ maitri
मैत्रेय भागवत १.१३.१(विदुर द्वारा तीर्थयात्रा में मैत्रेय से आत्मा की गति को जानने का उल्लेख), २.१०.४९(विदुर व कौषारवि/मैत्रेय के आध्यात्मिक संवाद का प्रश्न), ३.४.३६(मित्रा - पुत्र), ३.५(मैत्रेय द्वारा विदुर को सृष्टि क्रम का वर्णन), ३.६(मैत्रेय द्वारा विदुर को विराट शरीर की उत्पत्ति का वर्णन), ३.७(मैत्रेय से विदुर के अनेकानेक प्रश्न), मत्स्य ५०.१३(दिवोदास - पुत्र, चैद्यवर - पिता, मित्रयु तथा मैत्रायण - भ्राता, पूरु वंश), विष्णु १.१+ (मैत्रेय द्वारा गुरु पराशर से जगत में सृष्टि व लय के विषय में पृच्छा), विष्णुधर्मोत्तर १.१६७.२०(सौवीर राज का पुरोहित, मूषिका द्वारा मैत्रेय के दीप की वर्ति के हरण की कथा), स्कन्द १.२.४६.१३४(व्यास के कथनानुसार बालक के भावी मैत्रेय मुनि होने का उल्लेख), ७.१.१७३.३ (एकस्थान में स्थित ४ लिङ्गों में से एक मैत्रेयेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.५७२.८४(वीरण राजर्षि के पुरोहित, विष्णु मन्दिर निर्माण से वैकुण्ठ लोक प्राप्ति का कथन ) maitreya
मैत्रेयी भविष्य ४.१०६(मैत्रेयी द्वारा शीलधना को अनन्त व्रत का उपदेश), स्कन्द ३.३.८(याज्ञवल्क्य - पत्नी, सीमन्तिनी को वैधव्य से रक्षा के लिए सोमवार व्रत का परामर्श), ६.१३०.२(याज्ञवल्क्य - पत्नी, कात्यायनी - सपत्ना ) maitreyee/ maitreyi |