PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Mukhya / main, Muchukunda, Munja, Munjakesha, Munda, Mudgala etc. are given here. मुखार स्कन्द ६.१२४(मुखार तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य, लोहजङ्घ का दस्यु बनना, सप्तर्षियों के प्रभाव से वाल्मीकि बनना )
मुख्य भागवत ४.२५.४९(पुरञ्जन की पुरी में पूर्व दिशा के मुख्य संज्ञक द्वार से आपण व बहूदन विषयों को जाने का कथन), ४.२९.११(मुख्य द्वार से सम्बन्धित प्रतीकों का कथन), वायु ६.६१/१.६.५७(मुख्य/स्थावर नामक चतुर्थ सर्ग का उल्लेख), १००.१९/२.३८.१९(मुख्य संज्ञक देव गण के २० देवों के नाम), १०८.४०/२.४६.४३(नैमिषारण्य के पार्श्व में स्थित मुख्य तीर्थ के माहात्म्य का कथन), विष्णु ३.२.१५(अष्टम सावर्णि मन्वन्तर के देवों के ३ गणों में से एक), स्कन्द ५.३.२२.२( मुख्य अग्नि : ब्रह्मा का मानस पुत्र, स्वाहा - पति, दक्षिणाग्नि, गार्हपत्य तथा आहवनीय नामक तीन पुत्रों को जन्म ) mukhya
मुग्धबुद्धि कथासरित् १०.५.२(वणिक् - पुत्र, मूर्खता बोधक कथा )
मुचि पद्म १.६८(नमुचि - भ्राता, इन्द्र द्वारा वध),
मुचुकुन्द गर्ग ६.२(मुचुकुन्द द्वारा कालयवन को भस्म करने की कथा, कृष्ण की स्तुति), ७.४३.१०(मुचुकुन्द के जामाता शोभन द्वारा श्रीकृष्ण को भेंट प्रदान), देवीभागवत ७.१०.४(मान्धाता - पुत्र, पुरुकुत्स - भ्राता),पद्म ६.६०.४(मुचुकुन्द द्वारा कार्तिक कृष्ण एकादशी को व्रत करने के निर्देश के कारण जामाता के मरण आदि की कथा), ६.२४६(मुचुकुन्द का गुहा में शयन, कालयवन को भस्म करना, कृष्ण से मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त), ब्रह्म १.५.९५(मान्धाता व चैत्ररथी - पुत्र, पुरुकुत्स - भ्राता), १.८९(मुचुकुन्द द्वारा कालयवन का नाश, कृष्ण की स्तुति, तप के लिए गन्धमादन पर्वत पर गमन), ब्रह्माण्ड १.२.२०.४४(मुचुकुन्द दैत्य का सप्तम पाताल तल में बलि के नगर में निवास), २.३.३६.२६(मुचुकुन्दप्रसादकृत : कृष्ण के १०८ नामों में से एक), भागवत ९.६.३८(बिन्दुमती व मान्धाता के ३ पुत्रों में से एक), १०.५१(मुचुकुन्द द्वारा देवों से निद्रा के वर की प्राप्ति, कालयवन को भस्म करना, कृष्ण की स्तुति), मत्स्य १२.३५(मान्धाता के ३ पुत्रों में से एक, पुरुकुत्स व धर्मसेन - भ्राता), वराह ३६.५(पूर्व जन्म में सुन्द राजा), १५८.२९(मथुरा के अन्तर्गत मुचुकुन्द क्षेत्र में मुचुकुन्द का शयन), वायु ५०.४२(सप्तम तल पाताल में मुचुकुन्द दैत्य के नगर की स्थिति का उल्लेख), ८८.७२/२.२६.७२(बिन्दुमती व मान्धाता के ३ पुत्रों में से एक), विष्णु ५.२३.१९(मुचुकुन्द द्वारा कालयवन को भस्म करना, कृष्ण की स्तुति), स्कन्द १.१.२०(मुचुकुन्द द्वारा देवों के तारक से युद्ध में देवों को विजयी बनाना), १.१.२९(मुचुकुन्द का तारक से युद्ध), ४.२.८३.७३(मुचुकुन्द तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश १.१२.९(मान्धाता व बिन्दुमती - पुत्र), २.३८.२(यदु व नागकन्या - पुत्र, पिता द्वारा विन्ध्य व ऋक्ष पर्वत के परित: २ पुरी बनाने का निर्देश), २.५७(मुचुकुन्द द्वारा देवों से वर प्राप्ति, कालयवन का वध), लक्ष्मीनारायण १.२६०.२६(इन्द्रकुन्दन नगर के एकादशी व्रत प्रिय राजा मुचुकुन्द की पुत्री चन्द्रभागा तथा उसके पति शशिसेन का वृत्तान्त), १.५६९.१२(दैत्यों के अधिपति मुचुकुन्द व राजर्षि कुवलयाश्व के विमानों में स्वर्गगमन की प्रतिस्पर्द्धा का वृत्तान्त ) muchukunda
मुञ्ज गर्ग ४.२१(मुञ्जवन में कृष्ण द्वारा गोपों की दावानल से रक्षा), पद्म ३.२६.२०(मुञ्जावट तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.१८.१७(मुञ्जवान् पर्वत की शोभा का कथन, मुञ्जवान दुर्ग व शैल पर धूम्रलोचन शिव का वास, शैलोद सरोवर की प्रसूति का स्थान), १.२.२०.३३(चतुर्थ रसातल में मुञ्ज के आलय का उल्लेख), मत्स्य १९५.३७( मौञ्ज : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), १९६.१८( मौञ्जवृष्टि : आङ्गिरस कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), १९८.१८( मौञ्जायनि : विश्वामित्र कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वराह २१३(मुञ्जवान शिखर का वर्णन, मुञ्जवान पर नन्दी विप्र के तप का वृत्तान्त), वायु ५०.३२(चतुर्थ रसातल में मुञ्ज के आलय का उल्लेख), स्कन्द ६.२०८.७(सुरापायी ब्राह्मण के मौञ्जीहोम से शुद्ध होने का उल्लेख), महाभारत आश्वमेधिक १९.२३(मुञ्ज के शरीर व इषीका के आत्मा होने का कथन ) munja
मुञ्जकेश ब्रह्माण्ड १.२.३५.६१(अथर्वाचार्य सैन्धव द्वारा शिष्य मुञ्जकेश को संहिता देने तथा मुञ्जकेश द्वारा पुन: द्वैधा भिन्न करने का उल्लेख), मत्स्य १९७.७( मौञ्जकेश : अत्रि कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६१.५५(अथर्वाचार्य सैन्धव द्वारा शिष्य मुञ्जकेश को संहिता देने तथा मुञ्जकेश द्वारा पुन: द्वैधा भिन्न करने का उल्लेख), विष्णु ३.६.१३(मुञ्जिकेश : अथर्वाचार्य सैन्धव द्वारा शिष्य मुञ्जिकेश को संहिता देने तथा मुञ्जिकेश द्वारा पुन: द्वैधा विभक्त करने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३४२.१११(शिव के शूल के प्रहार से नारायण के केशों के मुञ्जवर्ण होने का उल्लेख), कथासरित् १२.२.१७२(मुनि विजितासु - शिष्य ) munjakesha
मुण्ड गणेश २.७६.१४(विष्णु व सिन्धु के युद्ध में मुण्ड का सोम से युद्ध), देवीभागवत ५.२६.३१(चण्ड - भ्राता मुण्ड दैत्य का देवी के साथ युद्ध, देवी द्वारा वध, चण्ड - मुण्ड वध से देवी द्वारा चामुण्डा नाम धारण), ब्रह्मवैवर्त २.६.९(सरस्वती में स्नान करके मुण्डन? का निर्देश), ब्रह्माण्ड २.३.१३.११०(मुण्डपृष्ठ तीर्थ : शिव के तप का स्थान), २.३.१५.४२(वृथा मुण्डों को ब्राह्मणों की पंक्ति से बाहर रखने का निर्देश), २.३.१५.६२(मुण्डों को श्राद्ध कर्म से बाहर रखने का निर्देश), मत्स्य १९५.२१(भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), वायु २३.५९/१.२३.५३(अर्धमुण्ड : ३३वें कल्प में शिव के अट्टहास से जन्मे कुमारों में से एक), ४५.१२३(प्राच्य जनपदों में से एक), ६८.८/२.७.८ (मुण्डक : दनु व कश्यप के प्रधान दानव पुत्रों में से एक), ७७.१०२/२.१५.१०२(मुण्डपृष्ठ तीर्थ की महिमा), १०८.१२/२.४६.१२(मुण्डपृष्ठाद्रि के महत्त्व का कारण : शिला का दैत्य के मुण्डपृष्ठ पर स्थित होना), १०९.४५/२.४७.४५(अव्यक्त जनार्दन के मुण्डपृष्ठ पर आदि गदाधर रूप में जन्म लेने का उल्लेख), विष्णु ४.२४.५३(भविष्य के १३ मुण्ड राजाओं द्वारा राज्य करने का उल्लेख), शिव ५.४७.३२(चण्ड - भ्राता, चण्ड - मुण्ड द्वारा महिषासुर के समक्ष देवी के सौन्दर्य का वर्णन, देवी द्वारा चण्ड - मुण्ड का वध), स्कन्द ४.२.५७.७३(मुण्ड विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६६.१५(महामुण्डा देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.२५(मुण्डासुरेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.६९(महामुण्डेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.१६(दैत्य, तुहुण्ड - पिता), ७.१.८.९(७ कुत्सितों में से एक मुण्ड द्वारा सोमनाथेश्वर से सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख), ७.१.२४२.१९(रुरु दैत्य का वध करके देवी द्वारा दैत्य का चर्म मुण्ड धारण ) , द्र. चण्डमुण्ड, चर्ममुण्डा munda
मुण्डन स्कन्द ४.२.६६.३१(वरणा तट पर हुण्डन - मुण्डन गणद्वय का संक्षिप्त माहात्म्य ) mundana
मुण्डी नारद १.६६.१३५(मुण्डी गणेश की शक्ति सुभगा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.१४.४०(वृथा मुण्डी को श्राद्ध में आमन्त्रण का निषेध), ३.४.४४.७०(५१ वर्णों के गणेशों में से एक), वायु २३.५९/१.२३.५३(३३वें कल्प में शिव के अट्टहास से उत्पन्न कुमारों में से एक), २३.२०९/१.२३.१९७(दण्डी मुण्डीश्वर : २५वें द्वापर में शिव अवतार की संज्ञा), शिव ३.१.३६(ईशान नामक शिवावतार में शिव के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ५.३.२११.२२(मुण्डीश्वर तीर्थ का माहात्म्य : देव का कुष्ठी बनकर ब्राह्मणों से याचना, अप्राप्ति पर भोजन में कृमि के दर्शन ) mundee/ mundi
मुण्डीर स्कन्द ६.७६.२(मुण्डीर भास्कर स्थान पर द्विज की कुष्ठ से मुक्ति ) mundeera/ mundira
मुद ब्रह्माण्ड २.३.७.२३(मुदा : अप्सराओं के १४ गणों में से एक, वायु से उत्पत्ति), २.३.७.१२८(महामुद : देवजनी व मणिवर के यक्ष पुत्रों में से एक), भागवत ४.१.५०(धर्म व तुष्टि - पुत्र), लक्ष्मीनारायण १.३५१.४२(पुण्यशालियों के साथ मुदिता करने का निर्देश ) muda
मुदावती मार्कण्डेय ११६.३०/११३.३०(कुजम्भ दैत्य द्वारा मुदावती का अपहरण,मुदावती द्वारा मुसल को स्पर्श करना, वत्सप्री से विवाह), स्कन्द ५.२.६३(विदूरथ - पुत्री, कुजम्भ दैत्य द्वारा हरण व मुक्ति की कथा ) mudaavatee/ mudavati
मुद्ग स्कन्द ५.३.२६.१४६(नभस्य मास में मुद्ग दान का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२३.१७(राजा सूर्यवर्चा की पत्नी मुद्गायनी द्वारा पति को मोक्ष प्राप्ति के लिए मन्दिर निर्माण का परामर्श ) mudga
मुद्गर अग्नि २५२.१४(मुद्गर अस्त्र के कर्म), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५३(मुद्गरक : प्राच्य जनपदों में से एक), २.३.३९.८(परशुराम द्वारा मुद्गर से मैथिल का वध), लक्ष्मीनारायण २.१७६.२१(ज्योतिष के योगों में से एक ) mudgara
मुद्गल गणेश १.९.३३(यज्ञध्वंस से दुःखी दक्ष द्वारा मुद्गल से गणेश पुराण श्रवण का उल्लेख), १.२०.५२(मुद्गल के अङ्क में आने पर दक्ष के रोगरहित होने का उल्लेख), १.२१.४०(गणेश भक्त मुद्गल की गणेश से एकरूपता का उल्लेख), १.२६.३१(मुद्गल द्वारा राजा के चुनाव की युक्ति का कथन), १.५७.१५(मुद्गल मुनि के दर्शन से दुष्ट कैवर्त्त की बुद्धि का परिवर्तन), २.५०.१९(मुद्गल द्वारा काशीराज नृप को गणेश के स्वानन्द लोक के वैभव का वर्णन), २.८५.४०(मुद्गल द्वारा निर्मित गणेश कवच का वर्णन), गरुड २.२५.२२(मुद्गल के स्थान पर पिशाच पाठभेद), ३.१७.३०(, पद्म ६.६६(ऋषि व भीम - पुत्र मुद्गल द्वय द्वारा यमदूतों की वंचना, यम से वार्तालाप, वैतरणी व्रत की महिमा), ६.१०८.२३(चोल द्वारा वैष्णव सत्र में मुद्गल को आचार्य बनाने का उल्लेख), ६.१०९.२१(चोल नृप के यज्ञ के आचार्य, चोल की स्वर्ग प्राप्ति में असफलता पर शिखा का उत्पाटन), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०९(३३ मन्त्रकृत् अङ्गिरसों में से एक), १.२.३३.१८(मुद्गला : ब्रह्मवादिनी अप्सराओं में से एक), १.२.३५.२(संहिताकार शाकल्य के ५ शिष्यों में से एक), भविष्य ४.८९(मुद्गल मुनि द्वारा यम - प्रोक्त यमदर्शन त्रयोदशी व्रत के माहात्म्य का कृष्ण के प्रति कथन), ४.१५३(यम द्वारा मुद्गल को जलधेनु दान के माहात्म्य का कथन), भागवत ९.२१.३१(भर्म्याश्व के मुद्गल आदि ५ पुत्रों की पञ्चाल संज्ञा का कथन, मुद्गल के २ पुत्रों के नाम), १२.६.५७(संहिताकार शाकल्य के शिष्यों में से एक), मत्स्य ५०.३(भद्राश्व - पुत्र, पञ्चाल देश रक्षक, मौद्गल्य - पिता), १४५.१०३(३३ मन्त्रकृत् अङ्गिरसों में से एक), १९५.२२( मौद्गलायन : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), १९६.४०(त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वामन ६४.४२(मुद्गल ऋषि द्वारा अञ्जन व प्रम्लोचा - कन्या नन्दयन्ती के राजरानी होने की भविष्यवाणी), ९०.२२(महर्षि, कोशकार - पिता), वायु ६०.६४(संहिताकार शाकल्य के ५ शिष्यों में से एक), ६५.१०७/ २.४.१०७(अङ्गिरस कुल के १५ पक्षों में से एक), ७०.७८/२.९.७८(अत्रि के ४ गोत्रों में से एक), ९९.१९५/२.३७.१९०(भेद? के ५ पुत्रों में से एक, पञ्चाल संज्ञा का कारण, इन्द्रसेना पत्नी से बध्यश्व पुत्र की प्राप्ति), ९९.१९८/२.३७.१९३(मुद्गल के पुत्रों की मौद्गल्य संज्ञा होने तथा क्षात्रोपेत द्विजाति होने का उल्लेख), विष्णु ४.१९.५९(हर्यश्व के मुद्गल आदि ५ पुत्रों की पाञ्चाल संज्ञा का कथन, मुद्गल से क्षत्रोपेत द्विजातियों की उत्पत्ति का कथन ; हर्यश्व - पिता), स्कन्द २.४.२६.२३ (चोल नृप के वैष्णव यज्ञ के आचार्य), ३.१.३७.१०(विष्णु द्वारा मुद्गल के लिए क्षीर सर का निर्माण), ७.३.३५(मुद्गल द्वारा स्वर्ग के दोष जानकर स्वर्ग न जाने का निश्चय, देवदूत व इन्द्र का स्तम्भन, मामु ह्रद की उत्पत्ति), हरिवंश १.३२.२६(वाह्याश्व के ५ पुत्रों में से एक, पञ्चाल वंश), २.६१.७टीका(नारायणी इन्द्रसेना के पति मुद्गल का उल्लेख), महाभारत अनुशासन ४८.१०( मौद्गल्य प्रजा की उत्पत्ति व कर्म का कथन), लक्ष्मीनारायण २.२४४.८३(शतद्युम्न द्वारा मुद्गल को निज आलय दान का उल्लेख ), द्र. मौद्गल्य mudgala |